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मूलपाठ
पुढवि द्वि-ओगाहण - सरीर संघयणमेव संठाणे । लेस्सा-दिट्ठी - णाणे जोगुवओगे य दस द्वाणा ।। संस्कृत-छाया
पृथ्वीषु स्थिति - अवगाहना - शरीर - सहननमेव संस्थानम् । लेख्या-दृष्टि- ज्ञानं योगोपयोगौ च दश स्थानानि ।। पृथ्वियों में स्थिति, अवगाहना, शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग और उपयोग इन दस बातों का विचार करना है ।
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व्याख्यान
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आगे चलकर सर्व प्रथम स्थिति (आयु) का विचार करना है फिर अवगाहना का वर्णन करेंगे। अवगाहना का सम्बन्ध शरीर से है, अतः इसके बाद शरीर का वर्णन किया जायेगा । फिर शरीर से सम्बन्ध रखने वाले संहनन एवं संस्थान का विचार होगा। संस्थान का अर्थ आकार है । यह आकार भेद श्या से होता है, इसलिए फिर लेश्या का विचार किया जायगा । लेश्या होने पर भी आत्मा का उपयोग अलग रह जाता है और कोई प्रकृति पर विजय पाता है, दृष्टि भेद भी होता है, इस कारण लेश्या के अनन्तर दृष्टि अर्थात् सम्यग् दृष्टि-मिथ्या-दृष्टि का विचार किया जायेगा । दृष्टि ज्ञान से होती है अतएव तत्पश्चात् ज्ञान का वर्णन करेंगे। ज्ञान मन-वचन-काय के योग से वर्तता है, इस कारण फिर योग का वर्णन होगा और फिर ज्ञान, दर्शन और चारित्र के उपयोग का वर्णन होगा।
जैसे लोक में पहले घर गिने जाते हैं, फिर घरों में रहने वाले लोगों का अपने धर्म उम्र, पेशा, नाम आदि लिखा जाता है पूछा जाता है उसी प्रकार धर्म शास्त्र में भी पहले जीवों के स्थान के विषय में प्रश्नोत्तर किये गये और अब तत् सम्बन्धी विशेष बातों का विचार किया जायगा । अर्थात् उल्लिखित दस बातों की तहकीकात की जायगी।
भगवती सूत्र व्याख्यान २३