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में एक सौ विमान हैं। इन तीनों हिस्सों के नाम क्रमशः अधस्तन, मध्यम और उपरितन हैं। इनके ऊपर पांच अनुत्तर विमान हैं। इस प्रकार सब मिलाकर चौरासी लाख, सत्तानवें हजार, तेईस विमान हैं।
भगवान् ने गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में संसार के जीवों के रहने के स्थान कितने हैं, यह बतलाया है। जब राज्य के घरों की गणना होती है तो उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ-इस प्रकार सभी घरों की गणना की जाती है। एक बड़ा महल, जिसमें बहुत से व्यक्ति रहते हैं, वह भी एक ही घर माना जाता है और जिसमें एक ही मनुष्य रहता है, ऐसा छोटा झोंपड़ा भी एक ही माना जाता है। यह बात तो आज सभी के वैज्ञानिक एवं प्राच्यविद्या के जानने वाले मानेंगे कि यह शास्त्र आज के विज्ञान से नहीं लिखे गये हैं। ज्ञानियों के ज्ञान से लिखे गये शास्त्रों में भी, जैसा कि राजा द्वारा कराई जाने वाली गणना में महल और झौंपड़ा एक ही माना जाता है, उसी तरह असंख्य योजन का विमान भी एक ही माना जाता है और पृथ्वीकाय के जीवों के रहने का छोटा-सा स्थान भी एक ही माना गया है। कीड़े-मकोड़े आदि सबके स्थानों की गणना इसमें आ गई है और यह हिसाब बतलाया गया है कि त्रिलोक के प्राणियों के रहने के स्थान कितने हैं?
अब यह प्रश्न होता है कि हमें इन कीड़ों-मकोड़ों आदि के स्थान जानने से क्या लाभ है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यह बात किसी राजा से जाकर पूछो कि तुम अपने राज्य के घरों की गणना क्यों कराते हो? अगर दस-पच्चीस झोंपड़े अधिक हुए तो क्या और कम हुए तो क्या ? इसके उत्तर में राजा यही कहेगा कि राज्य के घरों की गणना कराने के लाभ राजनीतिज्ञ ही जान सकते हैं। इसी प्रकार त्रिलोकी के घरों की गणना में भी बहुत तत्व भरा है। इसमें क्या तत्व है, इस बात को ज्ञानी ही जानते हैं।
केवल पुस्तकें पढ़ लेना ही ज्ञान नहीं है। अध्यात्म शास्त्र के अनुसार ज्ञान क्या है, यह बात समझने योग्य है। गीता में भी ज्ञान की परिभाषा कुछ और ही बतलाई है। पढ़ना या न पढ़ना ज्ञान या अज्ञान नहीं है। गीता में कहा है :
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्। आचार्योपासनं शौचं, स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ।।7 ।।
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च। जन्ममृत्युजराव्याधि,दुःखदोषानुदर्शनम्।।8।। असक्तिरनमिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु।
भगवती सूत्र व्याख्यान १६