Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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३८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ
हमारे शाह खानदानमें बड़े लोग 'लद्दा बेन' और हम छोटे लोग 'बेन' कहते थे। कहते थे, इसलिए कि उनका नाम लक्ष्मीबाई था और वे भी अबसे पन्द्रह वर्ष पूर्व स्वर्गस्थ हो चुकी हैं ।
बेन के साथ हम लोग ताँगापर स्टेशन पहँचे। शामका वक्त था । उन दिनों बीना एक छोटा कस्बा था । इटावासे स्टेशन पहुँचते-पहुँचते रात हो गई थी। कस्बामें बिजली नहीं थी, पर पूरे कस्बेमें यह खबर बिजलीकी भाँति फैल गई कि पण्डितजीको गिरफ्तार कर लिया है। लोग उमड़ पड़े स्टेशनकी ओर । स्टेशनपर भारी भीड़ और अंग्रेजी पुलिसका बन्दोबस्त । हुजूम बढ़ता जाता था। गहराता कोलाहल नारों-पर-नारे का तेज स्वर । इंकलाब-जिन्दाबाद, पण्डितजी जिन्दाबाद । जनताका जोश और आक्रोश, भीड़से बचानेके लिए एक ऊंचे मंचपर पण्डितजी जनताको सम्बोधन दे रहे थे। हम लोग उनतक नहीं पहुँच पाये । मंचके चारों ओर रस्सियोंसे घेरा गया था। दुरसे देखा, दूरसे सुना। उन दिनों बीनामें लाउडस्पीकर उपलब्ध नहीं थे। क्या कह रहे हैं, समझ में नहीं आया। भाषण खत्म होते ही सिपाही उन्हें उतार ले गये । कहाँ ले गये ? कहाँ ले जायेंगे ? पता नहीं। सब लोग कह रहे थे-जेल ले जायेंगे। रात स्याह हो चली थी भीड़-लौटने लगी। हम लोग भी लौट आये । कस्बेमें उदासी थी, मुहल्ले में मायूसी और घर-पड़ोसमें अजीब सन्नाटा।
रात सोचनेमें चली गई। अंग्रेज मिलिट्रीका आतंक, पण्डितजीकी जेल यात्रा और आन्दोलनका बिगुलनाद, बिगुल अब मुझे खिलौना नहीं रहा । विद्रोह, विरोध और आन्दोलनका अलख जगानेवाला एक शस्त्र ।
'बिगुल बज उठा आजादीका गगन गूंजता नारोंसे' आज जब कभी यह गीत सुनते हैं पण्डितजीके घर टॅगी बिगुल याद आ जाती है ।
भौआकी जेल यात्रामें सनत दिवंगत हो गया । एक शोक यह भी और एक याद यह भी ।
उनकी जीवन यात्रामें राजनीतिके कई पड़ाव हुए। सामाजिक सेवामें चलते रहे। विद्वत्ताका घर भरते रहे। सरस्वतीकी साधनामें अबतक संलग्न । सरस्वतीका यह वरदपुत्र वृद्धावस्थामें अब कलमके सिपाही हैं उनके कमरेमें अब बिगुल नहीं, कलमदान है। वे आत्म-विश्वासके धनी हैं, दीर्घ जीवन जीने और बहुत कुछ करने की ललक है। उनके द्वारा भरे घट और उनका जीवन घट भरा रहे। हम सब पीते रहें. रीते नहीं। यही भावाञ्जलि भौआके दीर्घ जीवन यात्राके लिये है। कन्या राशिका चमत्कार .पं० स्वतन्त्र जैन, गंजवासौदा
[ पूर्व भाग] बहत पुरानो बात है और मेरे बचपनकी बात है, स्व० पं० महेन्द्र कुमारजी न्यायाचार्य ह. महाविद्यालय इन्दौरमें न्यायतीर्थकी पढ़ाई में संलग्न थे। उस समय मैं भी इन्दौरमें प्रवेशिका खण्ड २ में पढ़ता था। एक दिन पं० जीने व्यंग (किन्तु सत्य) में कहा, देखो यह कन्या राशिका ही चमत्कार मानना चाहिये कि पं० बशीधरजी व्याकरणाचार्यका विवाह श्री मौजीलालजी बीनाकी लड़कीसे हो गया है । मजेकी बात यह है कि दोनों (वरवधू) को कन्या राशि है, और पण्डितजीको घर जमाई रख लिया है। पण्डित महेन्द्र कुमारजी न्यायाचार्य तो बनारस पहँचनेपर सुहृद्वर पं० डॉ० कोठियाके साथ बादमें हये थे। बात आयी-गयी-सी हो गयी, और समय अपनी अरोक गतिसे भागता रहा।
अब फरवरी सन् १९४१ का जमाना आ गया। इसी साल सूरतमें जैनमित्रादि कार्यालयोंमें नियुक्ति
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