Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : १७
रहे हैं, आचार्योंसे चित्र, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिलती रहती है, उनका एवं उनकी पत्नीका अलग-अलग बड़ा चित्र भी कमरेमें लगा हुआ है, जो संभवतः युवावस्थाका है। उनकी पत्नीका कुछ वर्षों पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। अपने स्वाध्याय एवं लेखनके अतिरिक्त बिना नागा प्रातः ८ बजे मन्दिर जी जाते तथा प्रवचन करते हैं और वहाँसे आकर दुकानमें बैठ जाते हैं। पर पुत्रोंको परामर्श के सिवाय पंडितजी कुछ नहीं करते । दुकान दोनों पुत्र सभालते हैं । पुत्र सुयोग्य और विनम्र हैं।
दो दिन ठहरनेके पश्चात् मैंने उनसे कहा कि मुझे आपके बारेमें कुछ जानकारी प्राप्त करनी है। यदि आपकी स्वीकृति हो, तो आज ही कुछ देर बैठ जावें । पंडितजीने पहले तो कहा कि उनके पास अपने बारेमें कहनेको क्या है, क्योंकि जीवन में ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया, जिसकी आपसे चर्चा कर सकू।
मैंने पंडितजीसे पनः निवेदन किया कि आपका जीवन तो समाजकी थाती (धरोहर) है। समाजको गर्व है कि उन जैसा व्यक्तित्व उसे मिला हुआ है, इसलिये उनके जीवनकी घटनाओंसे वर्तमान पीढ़ी ही नहीं, आगे आनेवाली पीढ़ीको भी प्रेरणा मिलती रहेगी। जब मैंने उनसे पुनः अपने खट्टे-मीठे संस्मरण सुनानेके लिये कहा, तो पंडितजीने कहा कि 'ठीक है, जब आप कुछ प्रश्न पूछना ही चाहते है तो फिर मुझे प्रश्नोंका उत्तर देने में क्या आपत्ति हो सकती है ?
प्रश्न-आपका जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर-पंडितजीने प्रश्नका उत्तर देते हुये कहा कि उनका जन्म सोंरई ( ललितपुर ) ग्राममें संवत् १९६२ में हुआ था।
प्रश्न-मैंने सुना है आपके पिताश्रीका निधन बहुत जल्दी हो गया ?
उत्तर-पंडितजीने चिन्तनमें डूबते हुये कहा कि डॉ० साहब, मेरे पिताजीका साया, जब मैं केवल तीन महीनेका शिशु था, तभी उठ गया था।
प्रश्न-उस समय घरमें कौन-कौन थे ? उत्तर-मेरी माँ, मेरे बड़े भाई छतारेलालजी एवं एकमात्र बहिन थी। प्रश्न-घरमें फिर कमाने वाला कौन बचा? ..
उत्तर-घरमें कोई कमानेवाला नहीं था। मेरी माँने ही जैसे-तैसे (छोटो दुकान) करके मुझे, बड़े भाई व बड़ी बहनको पाला-पोषा।
प्रश्न-सुना है आपकी माँ भी आपको बाल्यावस्थामें ही छोडकर स्वर्ग सिधार गईं ? ... उत्तर--पंडितजीको अपने बाल्यकालकी याद आ गई और बड़े दुःखके साथ कहने लगे कि जब मैं केवल ११ वर्षका था, तभी माँ गुजर गई। यही नहीं, माँके चार दिन पहले ही बड़ा भाई गुजर गया। बहनकी पहले ही शादी हो चुकी थी। डॉ० साहब, मेरा बाल्यकाल बड़ा संकटग्रस्त रहा। पहले तो घरमें कोई कमाने वाला था ही नहीं, लेकिन माँ एवं बड़े भाईके मरनेके पश्चात मैं एकदम अनाथ हो गया।
प्रश्न-उस समय आप स्कूल तो जाते ही होंगे ?
उत्तर-वहाँ स्कूल जाता था। चौथी कक्षा पास करके स्कूल जाना छोड़ दिया। गाँवमें चार कक्षा तक ही स्कूल था। बाहर जाकर पढ़नेका तो प्रश्न ही नहीं था।
प्रश्न-माँके मरनेके पश्चात आपका जीवन कैसे गुजरा? २-३
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