Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : १११
(ङ) पल्लीवाल (पालीके) : ब्राह्मण, बनिया। (च) श्रीमाल, श्रीमाली (श्रीमाल या भीनमालके) : ब्राह्मण, बनिया । (छ) बघेल (बघेलखण्डके) : भिलाल, गोंड, धोबी, माली, पंवार । (४) एक जैन धातु प्रतिमाकी स्थापकको गोलावास्तव्य लिखा गया है । १५
(५) आठवीं शताब्दी में उद्योतनसूरि रचित कुवलयमालामें इन देश-भाषाओंका उल्लेख है-मगध, गोल्ला, मध्यदेश, आंध्र, अन्तर्वेदी, कोशल, मालव, कर्नाटक, सिन्धु, गुर्जर, मरु, महाराष्ट्र, ताजिक, टक्क और कीर।३० दसवीं शताब्दीके राजशेखरने काव्यमीमांसामें, पुष्पदंतने नयकुमारचरिउमें व बारहवीं शताब्दीके रामचन्द्रमाणचन्द्रने नाट्यदर्पणमें भी यही देश-भाषायें लिखी हैं ।३०
(६) चंद्रगिरि (श्रवणबेल्गोल) के एक ई० ११६३ के लेखमें गोल्लदेशके गोल्लाचार्यका उल्लेख है। इनके विषयमें आगे विचार किया गया है ।
यह स्पष्ट है कि जैनोंमें गोलापूर्व, गोलालारे, गोलासघारे व अजैनोंमें गोलापूर्व ब्राह्मण, दर्जी व कलार, ये सभी किसी गोला (या गोल्ला) स्थानके वासी थे। इस गोल्ला देशकी स्थिति इतिहासमें एक महत्त्वपूर्व समस्या रही है । इस समस्या पर इस लेखमें आगे विचार किया गया है ।
गोलापूर्व शब्दमें पूर्वका अर्थ क्या है। यह पूर्व दिशा-सूचक नहीं है। बुन्देलखण्डको जैन जातियोंमें गोलापूर्व ही सबसे पूर्वके वासी थे। परन्तु गोलापूर्व ब्राह्मणोंका निवास उत्तर दिशामें है। पूर्व समयका सूचक है । पूर्वकालसे गोल्ला देशमें रहनेके कारण ही ये गोल्लापूर्व कहलाये । इसी प्रकारसे अयोध्यापूर्व जाति, जिसका वर्धमानपुराण व विजातीय-विवाह-मीमांसा3 में उल्लेख है, का नाम पड़ा होगा (यह अब अयोध्यावासी कहलाती है)। गोल्लादेशकी स्थिति
श्रावस्तीसे उदभत अनेक जातियोंका अस्तित्व होनेपर भी, श्रावस्ती कहाँ है, इसका स्मरण नहीं रहा था । श्रावस्ती (वर्तमान सहेठ-महेठ) की पहिचान ब्रिटिश राज्यकालमें उत्खनन होनेके बाद हुई । इसी प्रकारसे गोल्लादेशकी स्थिति कहाँ थी, इसकी स्मति नहीं रही है, यद्यपि वहाँसे कई जातियाँ निकली हैं।
भारतमें गोला (या मिलते-जुलते) नामके अनेक स्थान है ।२ ग्वालियर व गोला कोटका उल्लेख पीछे किया गया है। उत्तर प्रदेशमें गोला नामके दो ग्राम गोरखपर व खीरी जिलेमें हैं । गोलागोकर्णनाथ एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। उत्तर प्रदेश में हो शाहजहानपुर जिले में गोलारायपुर नामका एक प्राचीन ग्राम है जहाँ बौद्धकालीन अवशेष पाये गये थे। दक्षिणमें कृष्णा जिले में गोलि व बेलग्राम जिले में गोलिहल्लि नामके स्थान हैं, पर इनमेंसे कोई भी उपयुक्त मालूम नहीं होता।
कुवलयमाला आदि ग्रन्थोंमें गोल्ला देशकी विशेष देश-भाषाका उल्लेख होनेसे मालम होता है कि यह काफ़ी बड़ा क्षेत्र रहा होगा। कालान्तरमें इस प्रदेशका कोई अन्य नाम पड़ गया होगा, व गोल्ला देशकी स्मृति समाप्त हो गई होगी।
अगर गोलापूर्व, गोलालारे व गोलसिंघारे जातियों के प्राचीन कालीन निवास स्थानका पता चल सके, तो गोल्लादेशको स्थिति पर प्रकाश पड़ सकता है । यहाँपर उपरोक्त ५ नियमोंका प्रयोग किया जायेगा।
१. जातियोंका वर्तमान निवास : वर्तमान में गोलापर्व व गोलालारे जातियां बिखरकर अनेक स्थानोम बस गई हैं। फिर भी गोलालारे जाति अधिकतर झाँसी (उत्तर प्रदेश) व भिड (मध्य प्रदेश) के आसपास बसती है१४ व गोलापूर्व मध्यप्रदेशके बुन्देलखण्ड भागमें (टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह) में बसत
२-१५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org