Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५८ : सरस्वती - वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ
और सम्यक् चारित्रको आगममें निश्चय और व्यवहारके भेदसे दो-दो रूप बतलाया गया है ।' इस तरह मोक्षमार्ग वहाँपर दो भेदरूप बतला दिया गया है--एक निश्चयमोक्ष मार्ग और दूसरा व्यवहारमोक्ष-मार्ग । २ साथ ही इतना और स्पष्ट कर दिया गया है कि निश्चयमोक्ष मार्ग तो मोक्षका साक्षात् कारण है और व्यवहारमोक्ष मार्ग परम्परया, अर्थात् निश्चयमोक्षमार्गका कारण होकर मोक्षका कारण है । 3
श्रद्धेय पण्डित दौलतरामजीने छहढालामें तीसरी ढालके प्रारम्भमें इस विषयको बहुत ही सुन्दरताके साथ सारगर्भित दो पद्यों द्वारा स्पष्ट रूपमें प्रतिपादित किया है । वे पद्य ये हैं
" आतम को हित हैं सुख, सो सुख आकुलता बिन आकुलता शिव माँहि न तातें शिवमग लाग्यौ सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण शिवमग सो दुविध जो सत्यारथ रूप सो निश्चय, पर द्रव्यन तें भिन्न, आप में
कारण सो ववहारो ॥ १ ॥ रुचि, सम्यक्त्व भला है ।
की जानपनी, सो
आप रूप आप रूप में लीन रहे थिर अब ववहार मोखमंग सुनिये, हेतु नियत को होई ॥२॥
सम्यग्ज्ञान कला है ॥ सम्यक् चारित सोई ।
प्रथम पद्य पण्डितजीने कहा है कि आत्माका हित सुख है, वह सुख आकुलताके अभाव में उत्पन्न होता है और आकुलताका अभाव मोक्षमें है, अतः जीवोंको मोक्षके मार्ग में प्रवृत्त होना चाहिये । मोक्षका मार्ग सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूप है । ये तीनों निश्चयरूप भी होते हैं और व्यवहाररूप भी होते हैं अतः मोक्षमार्ग भी निश्चय और व्यवहारके भेदसे दो प्रकारका हो जाता है । इनमेंसे सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूप निश्चयमोक्षमार्ग तो मोक्षका सीधा कारण है तथा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप व्यवहारमोक्षमार्ग इस निश्चयमोक्षमार्गका कारण होकर मोक्षका कारण है अर्थात् वह परम्परया मोक्षका कारण है ।
कहिये ।
चहिये ।।
विचारौ ।
द्वितीय पद्य में पण्डितजीने कहा है कि समस्त चेतन-अचेतन पर द्रव्योंकी ओरसे मुड़कर अपने आत्मस्वरूपकी ओर जीवकी अभिरुचि ( उन्मुखता ) होना निश्चयसम्यग्दर्शन है, उसको अपने आत्मस्वरूपका ज्ञान हो जाना निश्चयसम्यग्ज्ञान है और बुद्धिपूर्वक तथा अबुद्धिपूर्वक होनेवाली कषायजन्य पाप और पुण्यरूप समस्त प्रकारकी प्रवृत्तियोंसे निवृत्ति पाकर उसका अपने आत्मस्वरूपमें स्थिर हो लीन हो जाना निश्चयसम्यक्चारित्र है ।
१. पंचास्तिकाय - गाथा १०६ ।
२. पंचास्तिकाय में व्यवहारमोक्ष मार्ग, गाथा १६० । पंचास्तिकायमें निश्चयमोक्ष मार्ग, गाथा १६१ । निश्चयव्यवहारमोक्षकारणे सति मोक्षकार्य संभवति । - पंचास्तिकाय, गाथा १६० की टीकामें आचार्यं जयसेन |
३. निश्चयव्यवहारयोः साध्यसाधनभावत्वात् । - पंचास्तिकाय, गाथा १६० की टीकामें आचार्य अमृतचन्द्र । पंचास्तिकाय, गाथा १६२ की टीकामें आचार्य अमृतचन्द्र । पंचास्तिकाय गाथा १६३ की टीकामें आचार्य अमृतचन्द्र । साधको व्यवहारमोक्षमार्गः साध्यो निश्चयमोक्षमार्गः । - परमात्मप्रकाश, टीका, पृष्ठ १४२ एवं निश्चयव्यवहाराभ्यां साध्यगाधनभावेन तीर्थ गुरुदेवतास्वरूपं ज्ञातव्यम् । - - परमात्मप्रकाश, श्लोक ७ की टीका ।
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