Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 654
________________ परिशिष्ट : ३९ डॉ० जैनने ( स्व ० ) डॉ० हीरालालजी जैनके निर्देशन में शोध कार्य किया । सम्प्रति वे आराके एच० डी० जैन महाविद्यालय में संस्कृत प्राकृत विभागाध्यक्ष हैं । अपभ्रंश साहित्यके प्रसिद्ध कवि 'रइधू' के साहित्यका आपने विशेष अध्ययन किया है । वर्द्धमानचरिउ, महावीरचरिउ आदि आपकी प्रसिद्ध संपादितसाहित्यिक कृतियाँ हैं । सामाजिक और साहित्यिक जीवनमें आप निरन्तर सक्रिय हैं । गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान वाराणसी के आप मंत्री हैं । डॉ० राजारामजी इस अभिनन्दन ग्रन्थके सम्पादक मण्डलके वरिष्ठ सदस्य है । डॉ० भागचन्द्रजी जैन 'भागेन्दु' : लेखक - अनिलकुमार जैन अनुसन्धित्सु जबलपुर जिलेके रीठी नगरमें जन्में डॉ० भागचन्द्रजी 'भागेन्दु' जैन समाजके उन मनीषियोंमेंसे हैं। जिन्होंने अपने जीवनको सेवामय बना रखा है। प्राचीन वाङ्मय, भाषाशास्त्र, जैन-दर्शन- संस्कृति और कला - के क्षेत्र में उनकी विशिष्ट सेवाएँ हैं। डॉ० भागेन्दुजीका अध्ययन सागर ( म०प्र०) के श्रीगणेश जैन महाविद्यालय तथा सागर विश्वविद्यालय में हुआ । जैन-विद्याओं पर अनुसन्धान निर्देशन हेतु विख्यात डॉ० 'भागेन्दु' जी सम्प्रति सागर विश्वविद्यालयसे सम्बद्ध शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दमोहके संस्कृत विभागके अध्यक्ष हैं । आपके निर्देशन में पाँच शोधार्थियोंको जैन विषयों पर पी-एच० डी० उपाधि प्राप्त हो चुकी है । सात अन्य शोधार्थी सम्प्रति शोधनिरत हैं। डॉ० भागेन्दुजी अखिल भारतीय स्तरकी अनेक संस्थाओं, शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयोंसे निकटतः सम्बद्ध हैं | आप कुशल लेखक, यशस्वी संपादक, सफल प्राध्यापक और अच्छे वक्ता हैं । आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ - देवगढ़की जैन कलाका सांस्कृतिक अध्ययन, भारतीय संस्कृतिमें जैनधर्मका योगदान, जैनधर्मका व्यावहारिक पक्ष : अनेकान्तवाद, अतीतके वातायनसे आदि हैं । आपने अनेक कृतियोंका सम्पादन भी किया है । साहित्याचार्य डॉ० पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थके प्रधान-सम्पादक और संयोजक डॉ० भागेन्दु जी हैं । प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थके सम्पादनमें आपकी भूमिका नितरां प्रशंसनीय है । . डॉ० सुदर्शनलालजी जैन : डॉ० सुदर्शनलालजीका जन्म अप्रैल १९४४ ई० में हुआ । आपकी शिक्षा कटनी, सागर और बनारस के जैन विद्यालयों में हुई । आपने संस्कृत और प्राकृत साहित्य तथा जैन-बौद्ध दर्शनका गहन अध्ययन किया और आचार्य एवं पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आपका शोध-प्रबन्ध 'उत्तराध्ययन सूत्रका 'समालोचनात्मक अध्ययन' विषय पर है और प्रकाशित हो चुका है। आपके निर्देशनमें अनेक शोध छात्र शोधकर्म में निरत हैं । सामाजिक गतिविधियों में आपकी प्रशस्त अभिरुचि है । डॉ० सुदर्शनलालजी सम्प्रति बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में रीडर हैं । इस अभिनन्दन ग्रन्थ सम्पादनमें आपका महनीय योगदान रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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