Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 655
________________ ४० : सरस्वती-धरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ डॉ० फूलचन्द्रजी जैन 'प्रेमी' : सागर (म० प्र०) जिलेके दलपतपुर ग्राममें जन्में डॉ० 'प्रेमी' जी कुशल-वक्ता, यशस्वी-लेखक, सामाजिक चेतनाके धनी युवा विद्वान् हैं। इन्होंने कटनी एवं बनारसके जैन विद्यालयोंमें शिक्षा प्राप्त की। जैनदर्शनाचार्य, प्राकृताचार्य एवं पी-एच डो० उपाधिधारी डॉ० प्रेमी, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान) में चार वर्ष प्राध्यापक रह चुके हैं। वे संस्कृत-प्राकृत भाषाओं तथा जैन-दर्शनके गंभीर अध्येता मनीषी है। इनका शोध विषय मूलाचारका समीक्षात्मक अध्ययन है। वह प्रकाशित है तथा इस पर इन्हें प्रशस्ति-पत्र एवं पांच हजार रुपयेके साथ १९८८ का महावीर पुरस्कार प्राप्त हुआ है। वे सम्प्रति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में जैन-दर्शन-विभागाध्यक्ष हैं। सामाजिक, साहित्यिक और शैक्षणिक प्रवृत्तियोंमें सोत्साह निरत डॉ० प्रेमीजी इस अभिनन्दन ग्रन्थके सम्पादक-मण्डलके मान्य सदस्य हैं। डॉ० शीतलचन्द्रजी जैन : ___डॉ० शीतलचन्द्र जी उ० प्र० के ललितपुर जिलेमें जन्में निरन्तर सक्रिय युवा विद्वान् हैं । बनारसमें अध्ययन-अनुशीलनके उपरान्त उन्होंने 'विद्यानन्दस्य दर्शनम् : एकाध्ययनम्'-विषय पर पी-एच. डी० की उपाधि प्राप्त को और श्री स्याहाद जैन महाविद्यालय वाराणसीमें जैन-दर्शन विभागके अध्यक्ष पद पर सेवारत रहे। डॉ० जैन सम्प्रति श्री दि० जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुरके प्राचार्य हैं। वे यशस्वी लेखक, ओजस्वी वक्ता, कुशल संचालक तथा सफल कार्यकर्ता हैं। जैन विद्याओं पर शोध-खोजकी दिशामें आप निरन्तर सक्रिय हैं तथा आपके निर्देशनमें अनेक शोध-कर्ताओंने पी-एच. डी० की उपाधि प्राप्त की है। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थकी रूपरेखाको क्रियान्वित करने तथा संयोजित करनेमें डॉ० शीतलचन्द्रजीका सक्रिय योगदान रहा है । श्री बाबूलालजी जैन फागुल्ल : संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थोंके अधुनातन कलापूर्ण मुद्रण और प्रथम पंक्तिके जैन मनीषियोंके अभिनन्दनग्रन्थोंके लब्धप्रतिष्ठ मुद्रक श्री बाबूलालजी फागुल्लका जन्म सन् १९२६ ई० में बन्देलखण्डके ललितपुर जिलेके मड़ावरा ग्राममें हुआ। श्रीवीर विद्यालय पपौरा और श्री स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी आपके प्रशिक्षण केन्द्र थे । मद्रणके क्षेत्रमें श्री फागुल्लजीका प्रवेश भारतीय ज्ञानपीठके व्यवस्थापकके रूपमें हआ। जहाँसे उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित किये। सम्प्रति वे महावीर प्रेस, भेलपर वाराणसीके स्वत्वाधिकारी हैं। अपने मिलनसार व्यक्तित्व और कार्यक्षमताके आधार पर श्री फागुल्लजी सर्वत्र यशः अजित कर सके हैं। श्रेष्ठ ग्रन्थोंके मुद्रण कार्यमें आप अनेक बार पुरस्कृत हो चुके हैं। सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यके अभिनन्दन-ग्रन्थके प्रबन्धनमें श्री फागुल्लजीकी भमिका, क्षमता और दायित्वबोध नितरां प्रशस्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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