Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५ / साहित्य और इतिहास १७ जिनका सम्बन्ध आध्यात्मिकतासे है वे स्वसमयमे अन्तर्भूत होते हैं तथा जितने न्याय व्याकरण, साहित्य सम्बन्धी ग्रन्थ हैं ये परसमय कहलाते हैं ।
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न्याय, व्याकरण, साहित्यरूप परसमयके ग्रन्थोंके बिना सिद्धान्तग्रंथों (स्वसमय) का स्वरूप व्यवस्थित नहीं हो सकता, न उनसे आत्मार्थी पुरुष कुछ लाभ भी ले सकता है एवं बिना स्वसमय के न्यायादि परसमयका भी कुछ उपयोग नहीं हो सकता। अतः ऐसी हालत में समाज जो दोनोंको अनुपादेय समझ रहा है उससे समाजका और उसके स्वसमय परसमयरूप साहित्यका नाश हो रहा है । इसलिये इनकी रक्षा करनेका हमारे समाजका परम कर्त्तव्य है । अतः इनके उद्वारके लिये कटिबद्ध हो जाना चाहिये ।
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