Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१२६ : सरस्वतो-वरपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ
केरावत, सोंधनी, धना (या धनी), पैंथवार, पचरसे, सरखड़े। संधी, अलेह व उचा गोत्र गोत्रावलियोंमें नहीं है, पर दमोहकी जनगणनामें पाये गये हैं। इनमें से भी कई स्थान-सूचक ही प्रतीत होते हैं।
कभी-कभी गोलापूर्वो में पटवारी, चौधरी, प्रधान व बड़कूर गोत्र कहे जाते हैं पर ये वास्तवमें पारिवारिक पद हैं। हो सकता है बड़घरिया भी कभी पद रहा हो व कालांतरमें गोत्रकी तरह प्रयुक्त होने लगा हो।
बुन्देलखंडमें गजरथके साथ पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा करानेकी परम्परा है। इस प्रकार प्रतिष्ठा करानेसे सामाजिक उपाधि दी जाती है। साह (साध) तो सभी कहलाते हैं, पहले रथसे सिंघई (संघपति) दूसरेसे सवाई सिंघई, तीसरेसे सेठ (श्रेष्ठि) व चौथेसे सवाई (या श्रीमंत) सेठ। ये पद पूर्वजोंकी समृद्धिके द्योतक हैं । गोत्रोंकी जनसंख्याका अध्ययन करनेसे मालूम होता है कि संपन्न परिवारोंकी अधिक वंशवृद्धि हुई है। गोलापूर्वोमें सबसे अधिक (ई० १९४१ में १६८७) फुसकेले हैं जो सिंघई, सवाई सिंघई या सेठ हैं। खाग (१५०५) सिंघई, सवाई सिंघई, सेठ व सवाई सेठ हैं। चन्देरिया (१२३५) सिंघई व सवाई सिंघई हैं । सबसे कम जनसंख्या दुगले (१), छोडकटे (१६) व पंचरत्न (१३) हैं. इनमेंसे कोई भी सिंघई आदि पदोंके धारी नहीं है । इन पदोंकी परम्परा प्राचीन लगतो है, घुवारा के ई० १२१५ के लेखमें गोलापूर्व सिंघईका उल्लेख है ।२५
वर्धमानपुराण लिखे जानेके बाद व गोलापूर्व डायरेक्टरीके प्रकाशनके पूर्व कुछ ऐसी घटनायें घटी जिनका गोलापूर्व जातिपर अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
१. करीब आधे गोत्र नष्ट हो गये।
२. लोग यहाँ-वहाँ जाकर बस गये। अपने वंशके बारेमें परंपरागत ज्ञान भुला दिया गया। नवलशाहने दोहरी गोत्र परम्पराका उल्लेख किया है, उसकी वर्तमानमें गोलापूर्वोमें स्मृति शेष नहीं है । नवलसाहने फुस केले गोत्रके चार मूल ग्रामोंका नाम लिखा है । कान्यकुब्ज ब्राह्मणों आदिमें भी इस प्रकार की परम्परा है। पर गोलापूर्वो में यह जानकारी भी लप्त हो गई है।
३. बिसबिसे व दसबिसे श्रेणियोंमें अचानक जनसंख्या कम हो जानेसे उपयुक्त विवाह सम्बन्ध मिलना मुश्किल हो गया। इस कारणसे दोनोंका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त होकर एक ही श्रेणी रह गई। केवल जो पचविसे दुरके स्थानोंमें बसे थे, उनका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा।
गोलापूर्वोकी जनसंख्याके इस भारी नाशका कारण स्पष्ट नहीं है। हो सकता है यह महामारी या दुर्भिक्षके कारण हुआ हो। यह भी सम्भव है कि यह राजनैतिक दुर्व्यवस्थाके कारण हुआ हो। ऐसा कहा जाता है कि मराठा सेनाने जिन स्थानोंपर आक्रमण किया, उनमेंसे कई बहुत वर्षों तक उजाड़ पड़े रहे। इसके पीछे मराठा सेनामें पिंडारी आदि वर्गोका होना हो सकता है । अन्य सम्बन्धित जातियाँ
आसपास बसी हई जैन जातियोंमें परस्पर धार्मिक व सामाजिक व्यवहार रहा है। इस कारणसे जातियोंने एक-दूसरेपर काफ़ी प्रभाव डाला होगा। यहाँपर गोलापूर्वोके आसपास बसने वाली अन्य जातियों पर विचार किया गया है।
___ अहार क्षेत्रमें प्राप्त लेखोंमें सबसे अधिक गोलापूर्वोके है। ये प्राचीनकालसे अब तकके हैं। प्राचीन लेखोंमें १५ जैसवाल जातिके (ई० ११४३ से १२३१ तक) व १३ हपति जातिके (ई० ११४६ से ११८० तक) है। इससे प्रतीत होता है कि जैसवालोंका निवास आसपास ही रहा होगा। वर्तमानमें जैसवाल जैनोंको
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