Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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धर्म और सिद्धान्त
१. तीर्थकर महावीरको धर्मतत्त्व-देशना २. जैन-दर्शनमें आत्मतत्त्व ३. निश्चय और व्यवहार मोक्ष-मार्ग ४. निश्चय और व्यवहार धर्मम साध्य-साधकभाव ५. निश्चय और व्यवहार शब्दोंका अर्थाख्यान ६. व्यवहारकी अभूतार्थताका अभिप्राय ७. संसारी जीवोंकी अनन्तता ८. जैनदर्शनमें भव्य और अभव्य ९. जीव-दया : एक परिशीलन १०. जैनागममें कर्मबन्ध ११. कर्म-बन्धके कारण १२. गोत्रकर्मके विषयमें मेरा चिन्तन १३. भुज्यमान आयुमें अपकर्षण और उत्कर्षण १४. क्या असंज्ञी जीवोंमें मनका सद्भाव है ? १५. पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी ।
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