Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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११८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ
पूर्ण स्थान थे न ही अधिक आवागमन था। सम्भवतः इसी कारण से इस क्षेत्रको उपरोक्त देशभाषाओंमें शामिल नहीं किया गया। बंगाल, उत्कल, तमिलनाडु व केरल दुरस्थ होनेके कारण उपरोक्त सूचीमें नहीं जोडे गये । यहाँपर एक भ्रांतिका निराकरण आवश्यक है। महाभारतमें व बौद्ध ग्रन्थोंके सोलह महाजनपदोंकी सूचीमें चेदिका उल्लेख है । इसे लेखकोंने बुन्देलखण्ड माना है।33736 परन्तु यह सही प्रतीत नहीं होता । चेदि जातिका प्राचीन स्थान कुरु (दिल्लीके आसपास) व वत्स (कौशाम्बी के आसपास) के बीच, यमुनाके किनारेपर था, व इसकी राजधानी शुक्तिमति (या सोत्थिवती) थी जो वर्तमान बाँदा जिलेमें है। इनकी ही एक शाखा कलिंगमें जा बसी, जिसमें महामेघवाहनका प्रतापी वंशज खारवेल (ई० पू० प्रथम शताब्दी) हुआ। ई० ५८० से १२१० के बीच कलचुरिया वंशका राज्य (जबलपुर, सतना आदि जिले) चेदि कहलाया ।
बाँदा जिलेकी भाषा बुन्देली नहीं है, बल्कि पूर्वी हिन्दी है । कलचुरियोंके राज्य क्षेत्र की वर्तमान भाषा बघेली व छत्तीसगढ़ी है । वर्तमान बुन्देलखण्डका थोडासा ही भाग प्राचीन चेदि जनपदमें था। कलचुरियोंका बुन्देलखण्डपर राज्य बहुत ही थोड़े समयके लिये था । स्पष्ट है, बुन्देलखण्डका अधिकांश भाग चेदि कभी नहीं कहलाया। सम्भवतः केन नदी चेदिकी पूर्वी सीमा मानी जानी चाहिये।
गोल्लादेशका इतिहास
गोल्लादेशके उल्लेख बहुत कम मिलते हैं। इसका प्रमुख कारण नवमी-दसवीं शताब्दीमें इसका नाम बदलकर जैजाकभुक्ति हो जाना रहा था। गोल्लादेश नाम कैसे हुआ व कब हुआ, ये महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं।
भारतमें कई प्रदेशोंका नाम शासक जातियोंके कारण पड़ा है। गुजरात (व पंजाबमें गुजरात नामक विभाग) गूजर या गुर्जर जातिके कारण हआ है। मालवा मालव-जातिके कारण, आंध्र आंध्र-जातिके कारण कठियावाड़ काठी जातिके कारण व सौराष्ट्र सौराष्ट्र-जातिके कारण कहलाये । रुहेलखंड, बुंदेलखंड, बघेलखंड, गोंडवाना, राजपूताना आदि नाम भी जातियोंके कारण हुए। यह प्रतीत होता है कि गोल्ला देश भी किसी प्राचीन गोल्ला जाति के कारण कहलाया। इन सभी स्थानोंमें प्राचीन काल में राज्य करने वाली जातियोंके अलावा बहुत सी अन्य जातियाँ रहती हैं जिनका प्राचीन राज्यकरने वाली जातियोंसे कोई संबंध नहीं है । उदाहरणके लिये गुजरातको अधिकतर जातियोंका गूजरोंसे कोई संबंध नहीं हैं, फिर भी वे गुजराती या गुर्जर कहलाती है। इसी प्रकारसे प्राचीन गोल्ला जातिका बन्देलखंडको जैन जांतियोंका कोई संबंध नहीं है।
गोल्ला संस्कृतके गोप या गोपाल का ही रूप है। हिंदीमें गोपालका रूपांतर ग्वाल है । दक्षिण भारतमें गोपालका रूपांतर गोल्ला है, वहाँ की कई जातियोंके चरवाहे गोल्ला कहलाते हैं। प्राचीन कालमें गोप जातिका उल्लेख श्रीकृष्णके साथ हुआ है।
गोप जाति व आभीर जाति प्राचीन कालमें एक ही थी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। आभीर जातिका उल्लेख पातंजलिके महाभाष्यमें, महाभारतमें व प्राचीन यवन (ग्रीक) लेखकों द्वारा भी हुआ है। ई० १८१ के एक लेखमें शक महाक्षत्रप रुद्रसिंहके आभीर सेनापति रुद्र भतिका उल्लेख है। आभीर राजा ईश्वरसेनके कालमें किसी शक महिला द्वारा दिये दानका उल्लेख है। पुराणोंमें ६७ वर्ष जिन १० आभीर राजाओंका उल्लेख है, वे शायद ईश्वरसेनके ही वंशके हो। किसी-किसोके मतसे इसने ही कलचरि संवत चलाया था।33 । समुद्रगुप्तके ई० ३५०के लेखमें आभीर आदि जातियोंपर शासनका उल्लेख है । ई० १२०० के एक लेखमें देवगिरिके यादव सिंघण-त्रिभवनमल्लके सेनापति खोलेश्वर द्वारा आभीर आदि जातियोंपर विजयका उल्लेख है । ई० छठवीं शताब्दीमें गोप व आभीर शब्दोंका समान अर्थ में उपयोग होने लगा। वर्तमानमें अहीर या ग्वाल भारतके कई भागोंमें बड़ी संख्या में रहते हैं। आभीरोंका राजपूतोंसे प्राचीन कालसे
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