Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२/व्यक्तित्व तथा कृतित्व १२३
बनवानेका अधिकार भी सभी श्रेणियोंको रहा है । कालांतरमें लघुश्रेणियोंका सम्मान बढ़ता जाता है और वे अन्ततः उत्तम श्रेणीके बराबर हो जाती हैं।,१६ ऐसा माना गया है कि लघुश्रेणीके परिवारोंके कई पीढ़ियों से सम्मानपूर्वक रहनेसे वे उच्चश्रेणीमें मिल जाते हैं। वर्तमानमें कई जातियोंमें बीसा-दसाका भेद महत्त्वहीन हो गया है जो उचित ही है । जातियोंके सांस्कृतिक व धार्मिक अस्तित्त्वकी रक्षामें लघुश्रेणियोंका बड़ा योगदान रहा है । लधश्रेणियोंके अस्तित्वसे लोग जातिच्युत होकर भी जातिके सदस्य रहे। हमड़ जातिमें दसा श्रेणी बीसा श्रेणीसे दस गुनी है, हूँमड़ जातिका अस्तित्व बने रहने में दसा श्रेणीका ही योग सर्वाधिक रहा है।
गोलापूर्वोमें दशविसे श्रेणीका अस्तित्व नहीं रह गया है। सम्भवतः डेढ़-दो सौ वर्ष पहले इस श्रेणीको मख्य श्रेणीमें मिला लिया गया। पचविसे दुरके स्थानोंमें बसे होनेसे उनका अलग अस्तित्व बना रहा । ई० १९२१ में एक कमेटी ने पचविसोंमें समान संस्कार व धर्माचरण देखकर यह निश्चित किया कि इनसे व अन्य गोलापूओं में विवाह संबंध उचित है । तबसे पचविसों व अन्य गोलापूर्वोमें भेद समाप्त माना जाना चाहिये । जो अभी कुछ ही पीढ़ियोंसे जाति च्युत हुए हैं उन्हें बिनैकया कहते हैं। इनके साथ विवाह संबंध करने में संकोच किया जाता है। इनकी संतति कालान्तरमें पुनः मुख्य श्रेणी में आ जायेगी।
विभिन्न श्रेणियोंकी उत्पत्ति कब हुई, यह कहना मुश्किल है। कान्यकुब्जोंमें सैकड़ों वंशकर्ता पुरुषोंके अलग-अलग विश्वा निश्चित है। किसी-किसीके मतसे ये ई० ११७९ में कन्नौज नरेश गाउडवाल जयचंदके समयमें निर्धारित किये गये। पर ये किसी प्राचीन वंशावलीमें नहीं पाये गये हैं। पोरवाल (पोरवाड़) में दसाबीसा भेद ई०१३वीं शताब्दीसे वस्तूपाल-तेजपालके समयसे कहा जाता है। वस्तुपाल-तेजपाल दोनों भाइयोंने आबके प्रसिद्ध देवालयोंका निर्माण कराया था । इनके पिता असराजने श्रीमाल जातिकी बालविधवा कुमारदेवीसे विवाह किया था। विधवा विवाह पर बन्धन धार्मिक नहीं, सामाजिक रहा है। दक्षिणभारतके सेतवाल, चतुर्थ, पंचम, बोगार आदि कई जैन जातियोंमें विधवा विवाह परंपरागत रूपसे होता आया है। संभवतः इसी कारणसे दक्षिणमें बीसा-दसाभेद नहीं है । यह सम्भव है कि गोलापूर्व व अन्य जातियोंमें श्रेणीभेद १२वीं-१३वीं शताब्दीमें उत्पन्न हुआ हो। खंडेलवालोंमें भी श्रेणियाँ रही होंगी, पर जब उनका शेखावाटीके बाहर व्यापक प्रसार हुआ होगा, तब लुप्त हो गयी होंगी।
गोलापूर्व जातिकी उत्पत्ति ईक्ष्वाकु कुलसे कहो गई है । वास्तवमें कुछ जातियोंको छोड़कर सभी पुरानी बनिया जातियोंकी उत्पत्ति क्षत्रियोंसे कही जाती है। इन जातियोंकी उत्पत्ति इनसे बताई जाती है१०.१३ १७ 3९
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गोलापूर्व : ईक्ष्वाकु। गोलालारे : ईक्ष्वाकु । गोलसिंघारे : ईक्ष्वाकु । जैसवाल : यदु। लमेंचू : यदु। अग्रवाल : यदु (गर्ग गोत्र) ओसवाल : पँवार, सोलंकी, भट्टी आदि अग्निकुलके राजपूत । पोरवाड : गुर्जर जाति । खंडेलवाल : सोम, हेम. चौहान, राठोर, चन्देल, कछवाहा आदि राजपूत कुल । माहेश्वरी : राजपूत (कई कुल या केवल झाला)
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