Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ११९
संबंध रहा है । हो सकता है कि कुछ राजपूत कुल आभीरोंसे ही निकले हों। राजपूतोंमें एक गोला जाति है जो राजपूत राजपरिवारोंकी सेवा करती थी। बुन्देलखंडके अहीरोंमें एक दौआ अहीर होते हैं। बुन्देले राजपूतोंमें इसी जातिकी दाईयाँ रखी जाती थीं । १६
गोल्ला देश नाम प्राचीन काल में ग्वालोंके कारण पड़ा, इसका संकेत इन तथ्योंसे मिलता है। १, आगरा जिलेमें व आसपास काफी अहीर बसते हैं।'
२. ई० १९३१ की जनगणनाके अनुसार, टीकमगढ़ जिले (ओरछा रियासत) में भूस्वामी जातियोंमें अहीर सर्वाधिक हैं।
३. झाँसी जिलेका एक दक्षिणी भाग अहीरवाड कहलाता है । १६.३३ ४. सागर जिले में खुरईके आसपास ग्वालोका राज सत्रहवीं शताब्दीके अंत तक रहने के जनश्रुति है।
गोल्लादेश नाम कितना प्राचीन है ? महाभारतके भीष्मपर्व मे बहुत बड़ी संख्यामें जनपदोंके नाम दिये गये हैं ।३४ इनमें दोके नाम गोपालकच्छ व गोपराष्ट्र है। गोपालकच्छ कच्छके आसपासका कोई स्थान होगा जहाँ गोप जातिका प्रभाव रहा होगा। गोपराष्ट्र गोलाराडका संस्कृत रूप मालूम होता है । यह वही स्थान होना चाहिये जहाँसे गोलाराडे (गोलालारे) जाति निकली है। कालांतरमें गोल्ला देशकी सीमा दशार्ण (भेलसाके आसपास) तक फैल गई।
यहाँ ग्वालियरका उल्लेख आवश्यक है। ग्वालियर शब्दकी उत्पत्ति किसी ग्वालिप ऋषिसे बताई जाती है। पर प्राचीन लेखोंमें इसे गोपाद्रि या गोपाचल कहा गया है। ये ग्वाल-गढ़ के ही संस्कृत रूपांतर हैं।" यह ग्वाल जातिके कारण ही ग्वालगढ़ या गोपाद्रि कहलाया है। ग्वालियरके जिले में प्राचीनतम लेख हूण (शक) तोरमाण व उसके पुत्र मिहिरकूलके है। तोरमाण पंजाबमें शाकल स्थानका राजा था, स्कंदगुप्तकी मृत्युके बाद उसने भारत के मध्य-भागपर अधिकार कर लिया। कुवलयमाला-कहा (ई० ७७९) के अनुसार तोरमाण हरिगुप्त नामके जैन आचार्यका अनुयायी था। इसके एरण (जि. सागर) के पास ई० ४९५ का लेख व सिक्के मिले हैं।।
ई० ५३२ के आसपास कोस्मस इंडिकेप्लस्तेस नामके ग्रीक लेखकने अरब, फारस,भारत आदि देशोंकी यात्राका विवरण लिखा है।" इसने "गोल्लास्" नामके किसी शक्तिशाली राजाका उल्लेख किया है। ग्रीक भाषामें नामोंके बाद स् लगता है (जैसे संस्कृतमें विसर्ग लगती है), इस कारणसे नाम गोल्ला होना चाहिये। इतिहासकारोंका अनुमान रहा है कि यह राजा मिहिरकुल ही है जिसे ई० ५३३ के एक लेखके अनुसार यशोधर्माने परास्त किया था। मिहिरकुल शब्दके कुल या गुलसे ही गोल्ला शब्द बना था, ऐसा अनुमान किया गया है। परन्तु उपरोक्त अध्ययनसे यह अधिक संभव लगता है कि मिहिरकूलको गोल्ला देशका अधिपति . होने के कारण गोल्लास् कहा गया हो।
नौवीं शताब्दीके आरंभमें गोल्लादेशके अधिकतर भागपर चंदेलोंका अधिकार हो गया। चंदेलोंको उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है, पृथ्वीराजरासोके महोबाखंडमें इनकी उत्पत्तिके बारेमें एक कहानी बताई गई है, पर वह काल्पनिक है। कुछ इतिहासकारोंका अनुमान है कि इनको उत्पत्ति गोंड जातिसे हुई थी। यह अनुमान इनका विवाह संबंध गोंडोके साथ होते रहनेसे किया गया है। आरंभमें ये गुर्जर-प्रतिहारोंके अधीन थे, पर ई० ९५५ के आसपास स्वतंत्र हो गये। इनको राजधानी महोबा व खजुराहोमें थी जहाँ इनके बनवाये अनेक
व्य हिंदू मंदिर विद्यमान है, कालंजरके प्रसिद्ध किलेपर इनका अधिकार था। धंग (लगभग, ई० ९५५१००२) व विद्याधर (लगभग ई० १०१९-१०३७) के समयमें इनके राज्यका काफ़ी विस्तार हुआ। गजनीके सुबुक्तगीनने जब भारतपर आक्रमण किया, तब धंगने लाहौरके जयपाल आदि भारतीय राजाओंके साथ
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