Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२/व्यक्तित्व तथा कृतित्व : २५
६. भौगोलिक एवं ऐतिहासिक तथ्य भी इस लेखमें हैं। उस समय सोंरई, जो आज उत्तरप्रदेशके ललितपुर जिलेके अन्तर्गत है, श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा राजा मरदनसिंघजू देवकी जागीर थी, जिनकी राजधानी गढ़ाकोटा (सागर, मध्यप्रदेश) थी और उनकी जागीरदारीमें सोरईका प्रशासन ठाकुर श्री महाराजकुमार श्री दिवान दुरजन सिंघजू देव, उनकी ठकुराईन श्री महाराज कुमार श्री दुलैया हंसकुंवरजू देवीके अधीन था।
ये तथ्य ऐसे हैं, जो सोंरईको ऐतिहासिकता और सांस्कृतिकताको प्रकट करते हैं ।
मल लेख और लेखमें उल्लिखित वंशावली दोनों यहाँ दिये जाते हैं । लेख हमें प्रिय भाई पं० दुलीचन्द्र शास्त्री एवं भाई विनीतकुमारने सोरई स्वयं जाकर और खण्डहर पड़ी वेदिकासे लाकर दिया है।
मूल वेदिका-लेख संवत् १८६४ वषे नाम माग वदि १३ सुभे ता दिन श्री जिनमंदिर प्रतिष्ठा अस्थापनीयतुं श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंदचार्जन्याये श्रीजिनागमउपदेसनीयतु महान जग्य, जागीर श्रीमहाराजाधिराज श्रीमहाराजा श्रीराजा मरदनसिंघजू देव राजधानी गड़ाकोटा तस्य जागीर मधे नग्र सोरईके ठाकुर श्री महाराज कोमार श्री दिवान दुरजनसिंघजूदेव तस्य ठकुराईन श्री महाराजकोमार श्रीदुलेहिया हंसकुंवरजू देव्य तत्र पुर वैहीसवर्न वंस इष्वाक गोत पद्मावती गोलापूरब बैक चंदेरिया श्री साह किसोरी तस्य पुत्र श्री साहू कूतेसिंघ दुतिय सुत अजबसिंघ कूतेसिंघके सुव दोही श्री साहू इद्रन्मन तस्य भार्जा मौनदे तस्य पुत्र क्ष प्रथम सिंघही धनसिंघ भार्जा दीपा पुत्र धोकल दुतिय सुत श्री सिंघही कुंवरमन भार्जा पजो सुत देव (दो) प्रथम मनराखन दुतिय करनजू कूतेसिंघके भाा सोता लघुसुत जग्यकरता श्री सिंघही मोहनदास भार्जा जैको तस्य पुत्र लाला मानधाता चिरंजीवत ताके हवालदार करता श्री राउत हरीसिंघ लोधी ठाकूर गोत षोरंमपुरिय दुतिया हवालदार उदीनंद सावा कडोरे पचतौरो व दाम पंवार गुर लड़िया लालजु वा मौकम वा नुप सावा धोकल बोजकके लिषया श्री फौजदार लल कड़ारो पिपलासेवारे बसंत कारीगर नै श्री जिन मंदिर जू को संवत् १८६२के अषाढ़ सुदि ७ बुधेको नो धरी सुभं ।
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