Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१०६ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ
यहाँ पर ब्राह्मण जातियोंके बारेमें कुछ जानकारी उपयोगी है। ब्राह्मणोंमें सबसे पुरानी जाति कान्यकुब्ज (कनौजिया) है । सरयूपारी (सरवरिया), बंगालके राढ़ी व वैदिक, सनाढ्य, जिझौतिया व छत्तीसगढ़ी कान्यकुब्जोंसे ही निकले हैं। इनके अलावा महाराष्ट्री देशस्थ, कश्मीरी आदिकी उत्पत्ति भी कान्यकुब्जोंसे बताई जाती है । केरलके नंबूद्री अहिच्छत्रसे निकले माने जाते है, जो कन्नौजके ही पास है।" पंचद्रविड व पंचगौडमेंसे लगभग सभीकी उत्पत्ति ब्रह्मर्षिदेश अर्थात् कन्नौजसे मानी जाना चाहिये । कुछ ब्राह्मण जातियाँ देवताओं, ऋषियों या राजाओंकी बनायी कही जाती है, उन्हें अन्य ब्राह्मणोंसे नीचा माना जाता है । कुछ ब्राह्मण जातियाँ यवन या फ़ारससे अद्भुत मानी जाती हैं-संस्कृतसे मिलती-जुलती भाषा बोलनेके कारण उन्हें ब्राह्मणोंमें मान लिया गया। भारतके बाहर थाईलैंड व बाली (इण्डोनेशिया) के ब्राह्मण कंबुज (कंबोडियाके) ब्राह्मणोंके अंतर्गत है। इनके पूर्वज दक्षिण भारतके थे । बहुत सी ब्राह्मण जातियोंको अन्य ब्राह्मण मान्यता नहीं देते, उन्हें शूद्रोंके समकक्ष मानते हैं।
इस लेखका प्रमुख उद्देश्य गोलापूर्व (गोलापूरब) जैन जातिका तुलनात्मक अध्ययन है। यह जाति अधिकतर बुन्देलखण्डमें बसती है। शिलालेखोंमें इसे गोल्लपूर्व भी लिखा गया है। सन् १९१४ ई० में प्रकाशित अखिल भारतीय दिगम्बर जैन डायरेक्टरीके अनुसार इसकी जनसंख्या १०,८३४ थी। इस डायरेक्टरीकी जनगणना एकदम सही नहीं थी. फिर भी इसके आधारपर गोलापूर्वोकी वर्तमान जनसंख्याका अनुमान लगाया जा सकता है । इस गणनाके आधार ये हैं
१. सन् १९११ व १९२१ के बीच जैनोंकी जनसंख्या करीब-करीब स्थाई थी। 3 अतः जैनोंकी जनसंख्या सन् १९११ व सन् १९१४ में करीब-करीब बराबर रही होगी।
२. जैनोंकी जनसंख्या वृद्धिकी दर, भारतमें जनसंख्याकी वृद्धिके दरके लगभग बराबर रही है । सन् १९५१ में जैन भारतकी आबादीके ०.४५% थे, सन् १९७१ में ०.४७% थे । स्वतंत्रतासे पूर्व जैनोंकी प्रतिशत आबादी घटती रही थी। ( सन् १८८१ में ४८% से सन् १९४१ में ३७% ) पर इसका प्रमुख कारण मुसलमानोंकी काफ़ी अधिक वृद्धिकी दर था।
३. जैनोंकी संख्या मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में अधिक बढ़ी है, व गुजराज, राजस्थान व उत्तर प्रदेशमें कम । इसका कारण संभवतः जैनोंमें अन्यत्रसे मध्यप्रदेश व महाराष्ष्ट में आकर बसते रहना प्रतीत होता है । जो भी हो, गोलापूर्वोमें जनसंख्या वृद्धिकी दर समस्त जैन समाजकी दरके लगभग बराबर ही रही होगी। सन् १९११ के आसपास जैनोंकी संख्या १२,४८,१८२१३ व गोलापोंकी १०,८३४ थी१४ सन १९४१ में जैनोंकी संख्या १४,४९,२३६ व गोलापूर्वोकी १२,५६९ हो गई५ 'इससे इस ३० वर्षों में समस्त जैन समाजमें १६.१०% व गोलापूर्वोमें १६.०१% वृद्धि निकलती है।
४. भारतकी जनसंख्या सन् १९११ से सन् १९८१ तक ९७% बढ़ी। अगर वर्तमान दशाब्दीमें वृद्धिकी दर १९७१-१९८१ की दरके बराबर मानी जाये (अर्थात् २४.८%), तो सन् १९८१ व १९८६ के बीच ११.७% वृद्धि हुई होगी।
विभिन्न धर्मावलंबियोंकी जनसंख्या, १९८१ की जनगणनासे उपलब्ध नहीं है। फिर भी उपरोक्त अनुमानोंसे गणना की जाय, तो गोलापूर्व जैनोंकी १९८६ में जनसंख्या २३,८४० के आसपास होना चाहिये । इस गणनामें संभवतः ५% से अधिकका दोष नहीं होना चाहिये, इससे जनसंख्याका अनुमान २२,६०० से २५,००० के बीच किया जाना चाहिये। इसी प्रकारसे अन्य दिगम्बर जैन जातियोंकी जनसंख्याका अनुमान दिगम्बर जैन डायरेक्टरीकी संख्यामें २०-२० का गुणा करके किया जा सकता है। इस गणनासे गोलालारे लगभग १२,०००, गोलसिंघारे १,४०० व परवार ९५,२०० होना चाहिये।
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