Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
इन भेदोंके सम्बन्ध में विद्वानोंकी धारणा रही है कि ४०० परिवारोंका समूह वीसविसे, दोसौ परिवारोंका समूह दसवसे और १०० परिवारोंका समूह पचविसे कहलाता है। नामसे ऐसा अर्थ निकलता भी है किन्तु यहाँ यह संख्या इस अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुई है। यह संख्या इनकी विशुद्धिकी प्राचीनताकी सूचक है। यहाँ "विसविसे" का अर्थ हैं ऐसे गोलापूर्व जो ४०० वर्षसे विशुद्ध हैं, जिनके कुल और जातिकी चारित्रिक विशुद्धि ४०० वर्ष पूर्वसे यथावत् बनी हुई है, जो सज्जातित्व के धनी हैं, जिन्हें सप्तपरमस्थानोंमें प्रथम स्थान प्राप्त है ।
जो केवल २०० वर्ष पूर्व से अपनी चारित्रिक निर्मलता बनाये हुए रहे, वे श्रावक " वसविसे" और जो जाति तथा कुलकी विशुद्धिले १०० वर्ष पूर्व से ही विभूषित है वे 'पचविसे" नामसे विश्रुत हुए । आर्थिक सम्पन्नता ओर धर्म वात्सल्य
स्थान
गोला पूर्वान्वयकी आर्थिक सम्पन्नता और उसका धर्म वात्सल्य प्रशस्य तथा अनुकरणीय रहा है। इस अन्वयके धावकों द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्तियों और मंदिरोंसे इस तथ्यका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस अन्वय द्वारा की गयी प्रतिष्ठाओंका विवरण निम्न प्रकार है
समय
संख्या
स्थान
१
बहोरीबन्द
संवत् ११४९ सं० ११७१ सं० ११९९
सं० १००० सं० ११९९
मऊ
10
१ १
जगत्सागर
सं० १२०२
१
सं० १२०२ सं० १२०३
पपौरा अहार
सं० १२०२ मं० १२०३
मं० १२०५
अहार
१ १
मं० १२०९ सं० १२१३
सं० १२१३
सोनागिरि
१
सं० १२१८ सं० १२३१
१
अहार महोबा नावई - नवागढ़ ( ललितपुर )
सं० १२३७ सं० १२१९ सं० १२०३
सं० १२८८ सं० १२०२
१
R
उदमक
T
अहार
मऊ
गोलापूरब भेद त्रय प्रथम विसबिसे जान । और दर्शावसे, पचविसे, कहाँ कहाँ तक गुणवान ||
छतरपुर
बहार अहार
अहार
अहार क्षेत्रपाल (ललितपुर)
२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व ४५
Jain Education International
-
समय
For Private & Personal Use Only
संख्या
१
२ १
मध्यप्रदेशमें उनतीस अन्वयोंके श्रावकोंने प्रतिमा प्रतिष्ठान समारोह सम्पन्न कराये हैं । इन अन्वयोंमें सर्वाधिक २६ प्रतिमा प्रतिष्ठायें गोलापूर्वान्वय द्वारा कराया जाना उनकी आर्थिक सम्पन्नता और धर्मवात्सल्यका द्योतक है। पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्रीने भी इस अन्वयके धर्मवात्सल्य की सराहना की है । प्रतिमा प्रतिष्ठा जैसे धार्मिक कार्यों में इस अन्वयके धावक अन्य अन्वयोंका सहयोग करनेमें भी पीछे नहीं रहे। घी -सम्पन्नता
५२
५ २ १
५३
श्री सम्पन्नता के समान घी सम्पन्नता भी इस अन्वयकी उल्लेखनीय रही है। साहित्य-सृजन करने और कराने में भी ये पीछे नहीं रहे। कुछ साहित्यकार निम्न प्रकार है-शंकर - कवि शंकर अपभ्रंशके विद्वान् थे । इन्होंने "हरिषेण चरिउ" की रचना की थी । यह कृति
१ १
www.jainelibrary.org