Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२० : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ
जब आशाके अनुसार आर्थिक सहयोग नहीं मिला,तो २००००/-रु० का १९७४-७५ में एक पारमार्थिकट्रस्ट स्थापित किया, जिसके द्वारा 'जयपुर (खानियाँ) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा एवं जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार नय' पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। लेकिन उक्त साहित्यकी उचितरूपमें बिक्री न होनेके कारण आर्थिक कमी अभी बनी हुई है।
प्रश्न-वर्तमानमें सोनगढके प्रभावके बारेमें आपके क्या विचार है ?
उत्तर-वर्तमान में तो अधिकांश व्यक्ति सोनगढ़का नाम लेनेसे भी कतराते हैं। सोनगढ़ी होना अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिये मेरी दृष्टिसे समाजमें सोनगढ़के प्रभावमें कमी तो अवश्य आई है, पर यह नहीं कहा जा सकता कि उस कमीका मुख्य कारण क्या है। मेरे साहित्यका जितना एवं जैसा प्रचार होना चाहिये था वैसा नहीं हो रहा है।
प्रश्न-वर्तमानमें जैन समाजकी स्थितिके बारे में आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर-जैन समाज अभी तक द्रव्यानुयोग, करणानुयोग और चरणानुयोगके महत्त्वको नहीं समझ पा रहा है इसलिये जो सामाजिक वातावरण बना हुआ है वह धार्मिक दृष्टिसे और व्यावहारिक दृष्टिसे अच्छा नहीं है।
प्रश्न-युवकोंमें धार्मिक जागृतिके सम्बन्धमें क्या आप कुछ कहना चाहेंगे ?
उत्तर-संस्कृतिक महत्वको जबतक हमारे युवकगण नहीं समझेंगे तबतक युवकोंमें धर्मके प्रति रूचि जागृत होना कठिन है। जब पूरा समाज ही धर्मके प्रति जागरूक नहीं है तब युवकोंसे क्या आशा की जा सकती है।
प्रश्न-आजकल समाजमें जो विस्फोटक स्थिति बन गई है उसके निराकरणके क्या उपाय है ?
उत्तर-विस्फोटक स्थिति होना कोई नई बात नहीं है। समाजमें तो ऐसी स्थिति बनती ही रही है। ऐसा कौन-सा युग था, जिसमें पूरे समाजमें शान्ति रही हो। इसलिये यह तो ऐसा ही चलता रहेगा, इससे चिन्तित होने जैसी कोई बात नहीं है।
समय काफी हो गया था तथा पण्डितजी साहब भी कुछ थक-से गये थे, इसलिये आगे मैंने प्रश्न पूछना उचित नहीं समझा। लेकिन पण्डितजीकी हाजिर जबाबी तथा स्मरणशक्तिको देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हई । पण्डितजीका व्यक्तित्व एवं लोकप्रियता जैन समाजमें कैसी है, क्योंकि विद्वानका अपने घरमें कम सत्कार होता है और वह बाहर अधिक सम्मान पाता है। इसलिये मैं बीना समाजके वृद्ध एवं क्रान्तिकारी व्यक्तियों के भी पण्डितजीके प्रति विचार जाननेके लिये उनसे मिलने चल दिया । डॉ० कोठिया साहब एवं डॉ० भागन्दु जी भी मेरे साथ हो लिये । और मुझे समाजसे मिलानेमें अत्यधिक सहृदयता दिखलाई ।
पंडितजीके प्रति बीना समाजके प्रमुख व्यक्तियोंके उद्गार सर्वप्रथम हमलोग शाह अमृतलालजी जैनसे मिले। शाह किरानाके व्यापारी हैं तथा आपको दुकान पण्डितजीकी दुकानके पास ही है। उनकी आयु ६८ वर्षकी होगी। आपके विचार काफी विस्तृत हैं इसलिये उन्हें अलगसे प्रस्तुत ग्रन्थमें दिया गया है । वैसे शाह साहब पण्डितजीके प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हैं और पण्डित जीके स्वभाव, व्यवहार, पांडित्य एवं सामाजिकताके बड़े प्रशंसक हैं तथा पण्डितजी जैसे विशाल व्यक्तित्वको बीना नगर सहित समस्त मध्यप्रदेसकी धरोहर मानते हैं ।
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