Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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साक्षात्कार डॉ० कोठिया और व्याकरणाचार्य
• डॉ० दरबारीलाल कोठिया, बीना [ अभिनन्दनीय सिद्धान्ताचार्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य राष्ट्र एवं समाजके उन वरिष्ठ मनीषियोंमें हैं, जिनकी राष्ट्रसेवा एवं सैद्धान्तिक पकड बहुत गहरी है और जो सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक प्रवृत्तियोंमें भाग लेनेके साथ 'स्वतंत्रता सेनानी' भी है। हालमें आपसे हमने जो साक्षात्कार लिया वह महत्त्वपूर्ण एवं ज्ञातव्य होनेसे यहाँ दिया जाता है।
--प्र० स० ] को० : स्वतंत्रता-आन्दोलनमें आपकी प्रवृत्ति कैसे हुई ? व्या० : मैं सन १९२० के अन्त में संस्कृतका अध्ययन करनेके लिए पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्यके,
जो बाद में अपनी अन्तिम अवस्थामें मुनि श्री १०८ गणेशकीर्तिके नामसे दिगम्बर साधु हो गये थे, साथ वाराणसी गया था और उनकी छत्रछायामें रहकर स्याद्वाद दिगम्बर जैन विद्यालयमें सन् १९३१ के अप्रैल तक मैंने संस्कृतका अध्ययन किया।
देशमें स्वतन्त्रता आन्दोलन चल ही रहा था। अतः मेरे अन्तःकरणमें देशकी स्वतंत्रताकी भावना जागृत हुई। यतः उस समय मैं अध्ययनरत था, इसलिए इच्छा रहते हुए भी स्वतन्त्रता आन्दोलनमें मैंने भाग नहीं लिया। उसके पश्चात् सन् १९३५ तक स्थिर होकर नहीं रह सका। सन् १९३५ के अन्तमें बीना (म० प्र०) में कपड़ेका व्यापार प्रारम्भ किया। तब कांग्रेसका सदस्य बनकर उस समयके वातावरणमें कांग्रेसकी नीतिके अनुसार प्रवृत्तियाँ करता रहा और सन् १९४२ में 'भारत छोड़ो' आन्दोलनमें कूद पड़ा। और जब महात्मा गांधी सहित कांग्रेस कार्यकारिणीके सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गये, तब आन्दोलनसे सम्पूर्ण देश अछता न रह सका। बीनाके गांधी माने जानेवाले श्री नन्दकिशोर मेहता सर्वप्रथम गिरफ्तार कर लिए गये। उसके पश्चात् मेरी गिरफ्तारी हो गयी और मुझे सागर (म० प्र०) जेल में भेज दिया गया।
को० : सागर (म० प्र०) जेलमें आप कब तक रहे और अन्य जैलोंमें कहाँ-कहाँ रहे ? उनके कुछ अनुभव भी
बताईये?
व्या० : सागर जेलमें करीब आठ दिन रहा और उसके बाद मुझे कई आन्दोलनकारियोंके साथ नागपुर सेंट्रल
जेलमें भेज दिया गया। उस समय पं. रविशंकर शुक्ल और पं० द्वारिकाप्रसाद मिश्र जैसे अनेक मध्यप्रान्तीय नेता भी उसी जेलमें थे। जेलका वातावरण बहुत अच्छा था । समय भी अच्छी तरह बीत रहा था । और भी आन्दोलनकारी उस जेलमें आते रहे। सभीको डिटेंशनमें रखा गया। धीरेधीरे केस चलनेकी प्रक्रिया चालू हुई। मुझे भी केस चलानेके इरादेसे करीब साढ़े छह मास बाद सागर जेलमें प्रत्यावर्तन (वापिसी) कर दिया गया। मजिस्ट्रेटने मुझे तीन माह कैदको सजा दी। तब जेल अधिकारियोंने अनेक व्यक्तियोंके साथ अमरावती जेलमें भेज दिया । वहाँ मासूम अली जेलका सुपरिन्टेन्डेन्ट था, जो बहत कर था। उसने सागरके पं० ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी व पद्मनाभ तेलंगको गुनाहखाने में पहले ही भेज दिया था । २-२
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