Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५६ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ
स्तुत्य निर्णय • सिंघई श्री जयप्रकाश जैन, बड़कुल, वाराणसी • श्रीमती शशि जैन बड़कुल, वाराणसी
हमें जब यह ज्ञात हुआ कि समाजके वरेण्य विद्वान् सिद्धान्ताचार्य पं. बंशीधरजी व्याकरणाचार्य, बीना ( म० प्र०) को अखिल भारतीय स्तर पर समाज अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट कर सम्मानित कर रही है, तो हम लोगोंको हार्दिक प्रसन्नता हई।
हमारा परिवार पण्डितजीसे पिछले ७०, ७५ वर्षसे सुपरिचित ही नहीं है, उनके आत्म-स्नेहसे ओतप्रोत रहा है। हमारे बाबा पूज्य सिंघई पन्नालालजी बड़कुल श्रद्धय पण्डितजीके ज्येष्ठ भ्राता सिं० ५० हजारीलालजी कोठिया (आदरणीय दाऊ डॉ० ५० दरबारीलाल कोठियाके पिताजी ) को अपने पुत्रों ( पूज्य चाचा रूपचन्द्रजी, चाचा राजधरलालजी. चाचा डालचन्द्रजी और पिताजी श्री मौजीलालजी ) को पढ़ाने हेतु नैनागिरजी (सिद्धक्षेत्र श्री रेशिंदीगिर, छतरपुर ) से सन् १९१४ में लिवा लाये थे। तभीसे पण्डितजीसे हसारे परिवारका नकट्य है । वे अपने बड़े भाईके पास आते-जाते रहते थे। हमारे बाबा उनसे बड़ा स्नेह रखते थे । यद्यपि आज न हमारे बाबाजी है, न तीनों चाचा है और न पिताजी हैं फिर भी उनका हमसे लगाव है। खास कर दाऊ ( डॉ० कोठिया ) और पिताजी बचपनमें तथा वाराणसी-सेवाकालमें एक
( लगभग तीन दशक ) रहे। पिताजी काशी विश्वविद्यालयके कई कालेजोंमें प्रधान कार्याधिकारी और दाऊ इसी विश्वविद्यालयके संस्कृत कालेजमें प्रवक्ता और बादको रीडर ( जैन-बौद्धदर्शन ) रहे । आज पिताजीके न रहनेपर भी दाऊ बनारस आनेपर घर ही ठहरते हैं और वही स्नेह बना हुआ है, जो पिताजीके साथ था। आज पूरा परिवार ( माताजी, चिरंजीव राजू और आयुष्मती अन्नो) बहुत खुश हैं कि श्रद्धेय काकाजी-पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य को समाज अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करके सम्मान कर रहा है।
__ श्रद्धय पण्डितजीने राष्ट्र, समाज और साहित्यकी अपूर्व सेवा की है। राष्ट्रको गुलामीसे मुक्त करानेमें सन् ४२ के स्वतंत्रता-आन्दोलनमें जेल-यातना सही, दस्सापूजाधिकार आदि सामाजिक आन्दोलनोंमें समाजका मार्गदर्शन किया और आगम-पक्षको सुदृढ़ करनेके हेतु अनेक ग्रन्थ लिखकर जिन-वाणीकी साधना की। इस प्रकार पण्डितजी समाज द्वारा सम्मान पाने के निःसन्देह योग्य है। उन्हें हमारे श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं।
नैतिकताको प्रतिमूर्ति • वैद्यराज पं० सुरेन्द्रकुमार जैन आयुर्वेदाचार्य, बीना
मेरा आदरणीय पण्डितजीके साथ चार दशकोंसे सुसंयोग चला आ रहा है। कभी-कभी उनसे कोई चर्चा छिड़ गयी तो घंटों वह चलती रही । भले ही चर्चा तात्त्विक हो या सामाजिक । वे चर्चा में इतने डूब जाते हैं कि दुकानदारीकी ओर भी उनका ध्यान नहीं जाता। उनके ज्ञानके तलको स्पर्श करना दुष्कर है। वैयाकरण होकर भी बड़े सूक्ष्म प्रज्ञ तार्किक एवं दार्शनिक है। आचार्योंकी कठिन पंक्तियोंके रहस्यको समझने में उन्हें देर नहीं लगती है । ऐसी असाधारण उनकी प्रज्ञा एवं विद्वत्ता है ।
पण्डितजीने कहीं किसी विद्यालयमें अध्यापन न कर आरम्भसे बीनामें ही वस्त्र व्यवसाय किया है। उनकी उल्लेखनीय विशेषता है कि वे एक भाव पर विक्रय करते हैं और ग्राहक विश्वासपूर्वक खरीदते हैं। उनके क्रय-विक्रयमें एक पैसेका अन्तर नहीं होगा, चाहे आठ वर्षका बच्चा ही उनकी दुकान पर पहुँचे।
वस्त्र-व्यवसायके अलावा समस्त लोकव्यवहारोंमें भी उनकी असाधारण नैतिकता समाई हुई है। मैं उनके भूरि गुणोंकी प्रशंसा करता हुआ उनके स्वास्थ्य एवं शतायुष्यकी शुभ कामना करता हूँ।
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