Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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४ : सरस्वतो-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई, विद्याभूषण पं० रामलालजी प्रतिष्ठारत्न अशोकनगर, पं० परमानन्दजी साहित्याचार्य बालाविश्राम आरा, पं० बालचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री (सिद्धान्त ग्रन्थोंके सम्पादक-अनुवादक) हैदराबाद, पं० पद्मचन्द्रजी शास्त्री बड़ा मलहरा (म० प्र०) डॉ० पं० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्य सेवानिवृत्त रीडर का० हि० वि० वि० वाराणसी (वर्तमान बीना), पं० गुलझारीलालजी न्यायतीर्थ, सागर, पं० दुलीचन्द्र शास्त्री बीना आदि विद्वान यहींकी देन हैं और वे विभिन्न स्थानोंमें समाज एवं साहित्य-साधनामें संलग्न हैं या संलग्न रह चुके हैं। इसीसे कितने ही लोग इस ग्राम सोरईको न केवल यूरेनियम आदि धातुओंका खान कहते हैं, अपितु आध्यात्मिक विद्वानोंकी खान भी कहते हैं ।
यह भी उल्लेख कर देना उपयुक्त होगा कि अब सोरईका यातायात कठिन नहीं रहा । यहाँसे ललितपुर, सागर और बोना आदिको सरलतासे आ-जा सकते हैं। पक्की सडकें और सड़कोंपर चलनेवाले वाहन प्रचुर मात्रामें उपलब्ध है।
__'जननी जन्मभूमिश्चय स्वर्गादपि गरीयसी।' यह कितना प्यारा वाक्य है । अतएव पंडितजीकी जन्मभूमि सोरई तुझे शतशः प्रणाम । प्राथमिक शिक्षा:
पण्डितजीको प्राथमिक शिक्षा स्थानीय प्राईमरी स्कूलमें कक्षा ४ तक हुई। जब पंडितजी कक्षा २ में पढ़ते थे तब शिक्षाधिकारी कक्षा ४ के छात्रोंकी परीक्षा लेनेके लिए स्कूलमें आया। उसने कक्षा ४ के एक छात्रसे एक सवाल पूछा । वह उसका उत्तर न दे सका। यह भी वहीं खड़े थे । इन्होंने उसका उत्तर दे दिया। इस पर शिक्षाधिकारी बहुत प्रसन्न हुआ और इनसे बोला "तुम पढ़ानेकी नौकरी करना चाहते हो तो हम नौकरी दे सकते हैं"। इन्होंने उत्तर दिया कि "हम अभी आगे पढ़ेंगे" । पंडितजी आरम्भसे तीक्ष्ण बुद्धि एवं मेधावी छात्र रहे हैं। वाराणसोमें उच्चशिक्षा :
चौथी कक्षा पास कर आप अपने मामाके पास वारासिवनी (म० प्र०) चले गये। वहाँ कुछ समय रहे । परन्तु वहाँ उच्चशिक्षाके साधन न थे। अतएव वहाँसे पं० शोभारामजीके साथ सागर आ गये और सागरसे पूज्य पं० गणेशप्रसादजी वर्णी अपने साथ वाराणसी ले गये। वहाँ स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालयमें उनकी छत्र-छायामें ११ वर्ष तक मुख्यतया व्याकरण और सामान्यतया साहित्य, दर्शन और सिद्धान्तका उच्च अध्ययन किया। आपने किसी भी विषयमें द्वितीय या तृतीय श्रेणी प्राप्त नहीं की। प्रथम श्रेणीमें ही सभी विषयोंमें उत्तीर्णता प्राप्त की है। व्याकरणाचार्य परीक्षा तो प्रथम श्रेणी प्रावीण्य सूचीमें द्वितीय स्थानसे पास की।
___ज्ञातव्य है कि सोरईसे परमानन्द, पद्मचन्द्र, लोकमन, बालचन्द्र ये भी उसी समय पढ़नेके लिए वाराणसी पहँचे। इन्होंने परमानन्द और बालचन्दसे कहा कि हम तीनों तीन विषयोंके आचार्य बनें हम व्याकरणाचार्य और तुम दोनों क्रमशः साहित्याचार्य और न्यायाचार्य । इस तरह हम तीनों एक ही ग्रामके तीन विषयोंके तीन आचार्य हो जावेंगे। इनमें पंडितजी व्याकरणाचार्य और परमानन्दजी साहित्याचार्य हो गये । पर बालचन्द्रजी न्यायमध्यमा उत्तीर्ण कर अध्यापनहेत पन्नालाल दि० जैन विद्यालय, जारखी (आगरा) में चले गये । अतः वे न्यायाचार्य नहीं कर सके, किन्तु उत्तरकालमें वे सिद्धान्तग्रन्थोंके सम्पादक एवं अनुवादक बने और उच्चकोटिका उन्होंने बैदुष्य प्राप्त किया एवं जीवनके अन्त तक जिनवाणीकी साधना की। हाँ, पंडितजीके विचार एवं भावनाको उन्हीं के भतीजे डॉ० पं० दरबारीलाल कोठियाने अवश्य 'न्यायाचार्य'
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