Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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८ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ
कि उनकी पूरी दिनचर्या घड़ीकी सुईके अनुसार बँधी हुई है । घड़ी बन्द हो सकती है पर उनकी दिनचर्या में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। पण्डितजी एक-एक मिनट समयकी कद्र करते हैं । यद्यपि सुबह-शाम उनका अब टहलना छूट गया, फिर भी वे घरपर कमरे में या बाहर गैलरीमें घूम लेते हैं । फलतः आज ८५ वर्षकी अवस्थामें भी उनका मस्तिष्क, इन्द्रियाँ, मन और शरीर स्वस्थ एवं निरोग है ।
(च) राष्ट्रीय और सामाजिक सम्मान – सन् १९४२ के 'भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया और गिरफ्तार होकर सागर, नागपुर तथा अमरावतीकी जेलोंमें दस-पौने दस माह रहे । अन्तमें आपको निर्दोष घोषित कर छोड़ दिया गया । फलतः १५ अगस्त, १९७२ में आपको स्वतंत्रता संग्राममें स्मरणीय योगदानके उपलक्ष्य में राष्ट्रकी ओरसे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधीने ससम्मान ताम्रपत्र भेंट किया और " स्वतन्त्रता सेनानी" के रूपमें प्रथम श्रेणीके दो टिकटोंका पास भी आपको मिला । तथा प्रदेश और केन्द्रकी ओरसे पेंशन भी मिलती है । सन् १९७४ में भगवान महावीरके २५०० वें निर्वाण महोत्सवपर आपको भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति माननीय श्री बी० डी० जत्ती द्वारा प्रशस्तिपत्र, सिद्धान्ताचार्यकी उपाधि और २,५००/- रुपयेकी सम्मान-निधिसे वीर निर्वाण भारतीकी ओरसे सम्मानित किया गया है ।
(छ) स्वतन्त्र चिन्तक और लेखक -- आप स्वतन्त्र चिन्तक और गम्भीर विचारक होनेके साथ उत्कृष्ट लेखक भी हैं । आपको आगमका पूर्ण पक्ष है । जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा में आपने आगम-पक्षकी ओरसे प्रमुख भाग लिया था । जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार, जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा आदि कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ आपने लिखे हैं, जिनका समाज में सर्वत्र आदर हुआ है । ये सभी ग्रन्थ प्रकाशित हैं ।
पण्डितजी के विषय में हम अन्तमें इतना ही कहेंगे कि वे एक ऐसे सन्तुलित वचनभाषी, कत्तव्यनिष्ठ, नैतिक आचारवान्, ठोस चिन्त क-लेखक, राष्ट्रसेवक, समाज-सेवक और साधक - पुरुष हैं, जो सदा स्मरणीय एवं अभिवंदनीय रहेंगे। मुझे तो उनसे बहुत कुछ मिला है । मैं उन्हें अन्तःकरणसे प्रणाम करता हुआ लेखनी को यहीं विराम देता हूँ ।
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