Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१/आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : ४७
शोभा राम ने शोभा पाकर प्रेम सलिल वर्षाया । निर्वाण भारती मेरठ द्वारा सिद्धान्ताचार्य पद पाया ॥ विविध अनेकों कार्यों से नित, दार्शनिक जीवन पाया। अपनी प्रतिभा के पराग से गौरवान्वित होकर आया । जब तक नभ में चन्दा सरज चमको सदैव स्पदंन है। प्रशम मूर्ति श्री बंशीधर को नत "फणीश" वन्दन है।
वंशीधर की वंशी गूज, उठी
पं० जीवन्धर जैन, बीना
ब-ना सदा मितव्ययी जीवन शी-ल व्रतों को अपनाया ध-रम मरम में जीवन बीता र-खा मोह निश्चय नय का जीवन में व्यवहार न छोड़ा व्या-मोह हुआ दोनों नय का कर्तव्य निष्ठ होकर महान् र-ख लिया सुपथ जीवन पथ का णा-निमित्त और न उपादान चा ही दोनों की सार्थकता र-म गये तत्त्व चर्चा में जब यह खनिया में जाकर ठहरे बी--णा का तार झनझना उठा ना-म हुआ रोशन इनका
फिर स्याद्वाद अरु अनेकान्त की ध्वनि सुनाई सब को दी फिर पंडितगण सब मौन रहे बंशीधर की बंशी गूज उठी
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