Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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सरस्वती के वरदपुत्रका शत शत अभिनन्दन है
पं० बाबूलाल जैन फणीश, पावागिरि ऊन सरस्वती के वरद पुत्र का शत शत अभिनन्दन है। दीप्तपुंज "श्री बंशीधर" को बारम्बार नमन है ।।
जिसने निज के जीवन को कष्ट कंटकों में पाया। जो काटों में पलकर भी 'मुकुन्द' गुलाबसा खिल आया । झांसी मण्डल सोरई ग्राममें, मकुन्दलाल प्रतिभा चमकी। सरल मूर्ति माँ 'राधा' ने भी उर से 'बन्शी' मोहन सी दमकी । 'स्याद्वाद' वाराणसी गंडा में व्याकरणाचार्य ज्ञान किया। धर्मशास्त्र से न्यायतीर्थ बन जीवन ज्योति जगा लिया । दिगदिगन्त उज्ज्वल जीवन पा चमके नित कुन्दन है। ज्ञान पूज्य श्री बंशीधर को बारम्बार नमन है।
(२) मध्य प्रदेश बीना नगर को स्व आश्रय पथ पाया। महावीर की दिव्य देशना से जगको पाठ पढ़ाया । सत्य, अहिंसा जैन संस्कृति से जन जन को उन्नत बनाया। अध्यक्षी पद से विद्वद परिषद को नित्य आपने महकाया ।। पूज्य गणेश वर्णी माला में अपना हाथ बटाया। जैन वाङ्गमय सरस्वती को तत्त्व मीमांसा से चमकाया ॥ विश्व शांति नित प्रतीक बन चमके तुम चन्द्र वदन है। राष्ट्र धर्म के दृढ़ संकल्पी का महके जीवन नन्दन है।
आप विशाल जैनधर्म के साहित्याकार महान हो। आप सपथ दर्शक जैन जाति के यग करुणाधार हो । स्वाभिमान गौरव के स्वामी दिग्गज लेखाकार हो । परम विशाल जिनागम के पोषक उत्तम पत्राचार हो । स्याद्वाद और अनेकान्त से जग को पथ बतलाया। भले भटके मानव को भी धार्मिक जीवन पनपाया ।। सर्वोदय से नित्य आपका महका जीवन चन्दन है। वात्सल्य मूर्ति श्री बंशीधर का शत शत अभिनन्दन है।
विज्ञ श्री दरबारीलाल ने शरण आपका पाया । और मनीषी बालचन्द्र ने गुणगान आपका गाया ॥
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