Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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बंशीधरके ही प्रकाश से जिनवाणी है जगमग दमकी
श्री हीरालाल जैन, बीना
लेकर जनम सभी जगती पर बढ़ते-फलते अपने रूपजो समृद्ध धरा पा लेता वह बन जाता दिव्य-स्वरूप
बढ़ना, फलना वह कहलाता जो निज बल से बढ़ जाता साधन और विपुलता पाकर अपना कुछ नहीं गढ़ता करता ।
उपवन का हर पादप भाई नहीं जरूरी छाया फल दे पर फलदार वक्ष बिन मांगे पन्थी को सबही दे डाले।
जैन-जगत-के इस उपवन में नन्हें पौधे से बन तरुवरछाया अरु फल दोनों मिश्रित दिये समाज को शाश्वत् प्रियवर ।
पाया समाज ने रतन अनोखा जिसकी आभा प्रतिक्षण चमकी "बंशीधर" के ही प्रकाश सेजिनवाणी है जगमग दमकी।
निश्चय और व्यवहार द्वन्द को सरल-सहजता से समझाया दोनों का निष्पादन करके पय से पानी सम नितराया।
है आकांक्षा यह समाज को अपनी आभा और ज्ञान से कर आलोकित और प्रकाशित रहें निरन्तर चिरभिमान से ।
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