Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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४० सरस्वतो वरवपुत्र पं० वंशोवर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ
विवेचनमें तो मौलिकता कूट-कूट भरी हुई है । लेखोंके अध्ययनसे यह पता नहीं चलता कि वे स्वयंकी उनकी कृति नहीं है । सामान्य पाठक भी यदि उनका अध्ययन मनोभावसे करे तो उसे ऊबनका अनुभव नहीं होता और उसके पठनकी और वह अग्रसर होता जाता है।
यह पण्डितजीके गहन अध्ययन एवं स्वाध्यायका ही आगमानुकूल समीक्षा प्रस्तुत कर सके। उनकी रचनाओंको तो प्रयास करना चाहिये ।
ऐसे विद्वान्का समाज कितना ही अभिनन्दन करे, वह थोड़ा है। पण्डितजी शतायु हों एवं हमलोगोंका मार्गदर्शन इसी प्रकारसे करते रहें, यही मेरी शुभकामना और जिनेन्द्र भगवान से प्रार्थना है । एक जागरूक मनीषी
• पं० खुशालचन्द्र बड़ेराव, शास्त्री, तेजगढ़
परिणाम है कि वे खानिया तत्त्वचर्चापर समाज के लिए अलग से प्रकाशित करनेका
यह हमारा धर्म एवं कर्तव्य होता है कि अपने लिये जिनके द्वारा कुछ प्राप्त हो उनका गुणस्मरण अवश्य ही करें ।
पं० जीने अपना सारा जीवन जैनधर्म एवं समाज सेवामें लगाया है और आज भी सजग भावसे संलग्न हैं । आपने समाजमें लगे समाज और धर्म विरोधी तत्व रूपी घुनको निकाल फेकने हेतु जो सतत प्रयत्न किये वे आज भी स्मरणीय हैं ।
केवलारी गजरथ एक अतीतकी झाँकी -पत्रों द्वारा लगातार प्रचार एवं प्रसारको देखकर श्री पं० जीने अपने विचारोंको दबाना एक अपमान तथा कायरता द्योतक समझ जोरदार आन्दोलन उठाया एवं पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री बनारस, भागचन्द्रजी इटोरया दमोहको आश्वस्त किया और लिखा क्या दमोह जिलेकी केवलारी बस्ती में जहाँपर मात्र एक ही घर जैनसमाजका हो वहाँपर गजरथ जैसे महान और पवित्र धार्मिक अनुष्ठानकी स्थापना की जाय । यह नाटक नहीं कि कहीं भी किसी हालत में खेला जा सके ।
श्री भागचन्द्रजी इटोरयाने अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं को आमंत्रित कर सलाह मशवरा करके पं० मूलचन्दजी "बत्सल" पन्नालालजी चौ०, भागचन्द्रजी इटोरया एवं मैं भी तैयार होकर पं० जीके साथ केवलारी शाहपुरसे पहुँचे। श्री सिं० घरमचन्द्रजी गजरथकारसे मिले तब उन्होंने कहा कि रथ चलेगा। इससे मेरा तथा गाँवका बदनाम होगा। बहुत समझाया गया अनेकों उदाहरणों द्वारा विषय सामग्री प्रस्तुत करनेपर भी सिं० जी सहमत नहीं हुए।
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अन्ततोगत्वा रथ चलनेकी शुभवेला आ गई। सर्वमंडली सहित पं० जी केवलारी पहुँचे। चर्चा विरोधकी चल रही थी कि पं० फूलचन्द्रजी अनशन प्रारम्भ कर एक मंडप में बैठ गये । समाजमें खलबली मच गई। पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री प्र० पा० कटनी जैन पाठशाला आये और बड़े आश्वासनोंके बीच पं० जीका अनशन तुड़वाया । आम सभा हुई जिसमें सर्वसम्मति से १५१ आदमियोंकी एक कमेटी बनी और निर्णय कि इस कमेटीकी स्वीकृतिपर ही गजरथ चलेंगे ।
हुआ
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इसी बीच बाबू जमुनाप्रसाद कलरैया सवजज नागपुरसे पधारे चर्चा के दौरान लोगोंने कहा बुन्देल खण्ड में दस्साओंको पूजन प्रक्षाल आदिका अधिकार नहीं है। तब पं० बंशीधरजीने अपनी गद्गद वाणीमें कहा इधर गजरथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएँ हों उधर पुजारियोंका अभाव हो दोनोंही बातें शर्मसे मर मिटनेकी हैं। उस दिन से दस्साओंकी पूजनका अधिकार दिया गया। पं० बंशीधरजी एक लगनशील, कर्मठ, उदारमना हैं । आपका जैन साहित्य में पूर्ण आधिपत्य है। हम आपके दीर्घजीवी होनेकी कामना करते हैं।
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