Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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सविनय-अभिनन्दन । सौ० रत्नप्रभा पटोरिया
हे सरस्वती के वरदपुत्र ! चिर जियो, तुम्हारा अभिनन्दन । मेरा शत शत वन्दन, चिर जियो. करूँ मैं अभिनन्दन ।।
२ जब गाँधीजी ने स्वतन्त्रता का, भारत में बिगुल बजाया था। उस समय तुम्हीं ने मोह त्याग, अपना अनुराग लुटाया था।
सन् बयालीस में सहे कष्ट, जिसका हिसाब नहीं लेखा था। दुःख सहे सींकचों के भीतर, निज राष्ट्र-विजय-हित सोचा था ।।
ले ज्ञान दीप निज कर में तब, कई ग्रन्थ लिखे अनुवाद किये। ये स्याद्वाद नय और प्रमाण, इन सब को अति ही सरल किये ॥
स्वदेश, जैन-दर्शन के हित, जो कार्य अनेकों सुदृढ़ किये । शब्दों में उन्हें न बाँध सकू, वे अनुपम अमर प्रकाश लिये ।।
चन्दा और तारे चमकेंगे, जब तक इस पृथ्वी के ऊपर । यश गान तुम्हारा गायेंगे,
मिल कोटि कोटि कण्ठों से सब । हे सरस्वती के वरद पुत्र ! चिर जियो तुम्हारा अभिनन्दन । मेरा वन्दन शत-शत, वन्दन, चिर जियो करूँ मैं अभिनन्दन ।।
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