Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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सरस्वतीके वरद-पुत्र हे ! बंशीधर व्याकरणाचार्य
पं० अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ, 'साहित्यरत्न' जयपुर
वन्दन है, अभिनंदनीय है! विज्ञ मनीषी परम उदार ! साक्षात् गुण-ज्ञान पयोनिधि ! सादा जीवन उच्चविचार ।।
विद्वत परिषद् मार्ग-प्रदर्शक । दढ़ श्रद्धानी आस्थावान ।। पत्रकार निर्भीक साहसी शुद्ध समालोचक गुणवान ।।
स्याद्वाद-विद्यालय काशी गुरु 'गणेश' से पाया ज्ञान । दर्शन औ साहित्य-न्यायके वने ' प्रखर उद्भटविद्वान् ।।
सेवा में निःस्वार्थ समर्पित मिला सहज सम्मान अपार । भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गये कितनी ही बार ॥
शुष्क विषय व्याकरण कठिन अति उसके भी आचार्य महान । बिना बाँसुरी, हे बंशीधर । करा दिया गीता का ज्ञान ।
सभी धार्मिक औ सामाजिक संस्था से संबंधित आज । पाकर एक मूक सेवक को गौरवान्वित हआ समाज ॥
आगम औ सिद्धांत ग्रन्थ के सफल प्रवक्ता व्याख्याकार । बतलाया है "जिन शासन में महत्त्वपूर्ण निश्चय व्यवहार ॥"
जन-सेवा में बीते जीवन सुखी स्वस्थ हो सब परिवार मंगलमयो कामना येही देखो अभी बसंत हजार ॥
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पूर्ण स्वतंत्र विचारक लेखक | मंथन और मनन में लीन । मौलिक सत् साहित्य रचा अति आर्ष-मार्ग अनुसार प्रवीण ॥
श्रद्धा से मस्तक झुक जाता देख समूचे अद्भुत कार्य सरस्वती के वरदपुत्र हे। बंशीधर व्याकरणाचार्य ।
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