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[ ४८१ ] र्पिणी में होनेवाले सबी तीर्थंकर महाराजोके पांच पांच कल्याणक समझ लेने और उन्हीं कल्याणकोंके दिनोंमें विशेष करके तीर्थयात्रा करनी उसीमें जिन दिने भगवान् के जन्मादि कल्याणक हुए होवे उसीकी भावमासै अनुराग पूर्वक निजको हितकारी होनेसे वारंवार स्तुति वगैरह करना सो इन्द्रादिकों की तरह आत्मार्थियों का मुख्य कर्तव्य है और उसी यात्रा बिधानका उपदेश करना तथा पूर्वोक्त कल्याकोंको यात्रामें श्रीतीर्थ कर महाराजोंकी भक्ति करनेसे मोक्ष प्राप्तिका कारण रूप सम्यक्त्व निर्मल होता है।
अब इस जगह नयगर्भित जैन शास्त्रोंके तात्पर्यार्थको जानने वाले तत्वज्ञ पुरुषों को न्याय पर्वक विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि सबी कर्मभूमी १५ मनुष्य क्षेत्रों में सब कालके सबी तीर्थंकर महाराजों के पांच पांच कल्याणकोंके दिनोंकी अपेक्षा संबंधी व्यवहारनय करके श्रीमहावीर स्वामीके पांच कल्याणक दिखाकरके उसी मजब ही व्यवहार नयसै सबी तीर्थंकरों के पांच पांच कल्याणकोंको समझ लेनेकी ऊपरके पाठमें सूचना दी है इसलिये सबो तीर्थ कर महाराजो के पांच पांच कल्याणकों के बहुत अपेक्षा संबन्धी व्यवहारनयके आगे पीछेके सब पाठको छोड़ करके शास्त्रकार महाराजों के अभिप्रायके विरुद्धार्थमैं पर्वापरके सम्बन्ध बिनाके अधूरे पाठसे बाल जीवीको श्रीमहावीर स्वामीके पांच कल्याणक दिखा करके निश्चयनयके छ कल्याणकांका निषेध किया सो कदापि नहीं हो सकता है तथापि न्यायरत्नजीने किया सो अज्ञानता या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वताका कारण मालूम होता है क्योंकि श्रीजैन शास्त्रो में बहुत अपेक्षा संबंधी व्यवहार नयकी
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