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द्यनुकृति देवाधिप देवदानवविभव प्रअत्याचारानुकरणं, तथा गंभीर प्ररूपणा, गंभीरंसाभिप्रायमिदं यात्राविधान तथा विध मित्यस्यार्थस्य प्ररूपणा प्रकासना गंभीर प्ररूपणा कृता भवतीति तथा लोकेजनमध्य वर्णःप्रसिद्विर्जायत इतियोगः,शब्दः समुच्चये कस्य प्रवचनस्य जिनशासनस्य दीर्घत्वं प्राकृतत्वादिति यात्रया अनंतरोक्त विधानोत्सवेन क्रियमाणयेति गम्यं, केषां जिनानां वीतरागाणां नियमेन नियोगेन एत्तोच्चियत्ति यतएव कल्याणक यात्राया तीर्थकर बहुमानादिकं कृतं भवत्यत एव हेतोः मार्गानुसारिभावो मोक्षपथानुकुलाध्यवसाय आगमानुसारी वा जायते भवत्य सन् किंभूतो विशुद्धोग्नवद्यः सत्वाविसुद्धोऽसौ जायते विशद्धपतीत्यर्थः । इति गाथा द्वयार्थः ॥३७ ॥३॥
उपरके दोनों पाठों का संक्षिप्त भावार्थ कहते हैं किसब १५ कर्मभभी मनुष्य क्षेत्र में सर्व काल में होनेवाले सर्व श्रीतीर्थकर महाराजों के परम मंगलकारी पांच पांच महाकल्याणक होते हैं सो अनादि कालसे श्रीतीर्थकर महाराजोंके पांच पांच वस्तु, याने-कल्याणक होने का स्वभाव होनेसे नियम करके अवश्य होते हैं सो सर्व भुवने, याने-१४ राज लोकमें सबको अदभुत आश्चर्य उत्पन्न करने वाले तथा तीन जगतके सर्वजीवोंको सुखरूप आनंद उत्प न कारक होनेसे विशेष श्रेयके साधनरूप कल्याण फटके देनेवाले हैं सो तीन भुवनके गुरु जगत् पज्य श्रीजिनेश्वर भगवान् तीर्थंकर महाराजोंके च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञानो त्पत्ति, और निर्वाण इस तरह से पांच पांच कल्याणक होते हैं
सो अपने आराधन करनेवाले जनोंको श्रेय कारीहै ऐसा जानना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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