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और अपनी. आत्माको पुण्यके भंडाररूप धन्य माननेवाले तथा धर्मरूप धनको प्राप्त करनेवाले और भक्तिवत बहुमान पूर्वक नम्रहुएहै शरीर जिन्हों के ऐमै देवता मनुष्य और इंद्रादिकोंके जैसे पढते भावहोवे वैसे हर्ष सहित विधिप. वंक श्रीजिनेश्वर भगवानों के च्यवनादि होनेवाले पांचों कल्याणकोंके दिनों में जिन यात्रा सो श्रीवीतराग भगवान् का सत्सव तथा पजाआदि कार्य अपनी तथा दूसरोंकीआत्मा कल्या
के लिये करते हैं उन्हीकल्याणकों के दिनोंको जाननेकी इच्छा वालोंके लिये सबी श्रीजिनेश्वर महाराजों के पांच पांच कल्याणकोंके दिनोंको यहां दिखानेको महान कार्य करने में तो अन्धकार समर्थ नहीं होनेसे उसीका नमनारूप वर्तमान शासनके नायक तथा नजीक उपगारी तीर्थकर होनेसे इन्हीं एक श्रीवर्द्धमान स्वामीजीके पांच कलयाणकोंके दिनों को दिखातेहै यथा-प्रथम आषाढ शुदी ६ को च्यवन, दूसरा चैत्रशुदी १३ को जन्म, तीसरा मार्गशीर्ष वदी १० को दीक्षा, चौथा वैशाखशदी १३ को केवड, और पांचमा कार्तिक अमावश्याको मोक्ष सो इसही तरहके श्रीमहावीर स्वामीके पांच कल्याणकों के मुजबही दर्तमान अवसर्पिणी की अपेक्षासे श्रीऋषभदेव स्वामि आदि २३ श्रीतीर्थ कर महाराजों के भी पांच पांच कल्याणक समझलेना सो मुख्य वृत्ति करके एक तीर्थकर महाराजके च्यवनादि पांच कल्या. णक दिखाये, उसी मुजबही पांचों भरतक्षेम तथा पांचों ऐरा वर्त क्षेत्रोंमें और पांचों महाविदेह क्षेत्रोंमें सर्व तीर्थंकर महाराजों के निज निज तीर्थ, याने अपने अपने शासनमें पांच पांच कल्याणक समझलेना औरऐसाही उत्सर्पिनिमें अवसShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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