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सफलताकी कुजी (ले०- श्री बा. उप्रमैन जैन एम० ए०, एल-एल० बी०)
कोई भी किसी प्रकारकी भी संस्था क्यों न हो, जिम कार्यको हम छेड़ रहे हैं वह लाभदायक होना उमकी सफलता या असफलताका आधार उसके संचा- चाहिये। ऐसा न हो कि केवल शोर मचाने तक ही लकगण ही हुआ करते हैं। वे जैसी नीति या जैसा उसकी पूर्ति ममझ ली जावे । यदि परिश्रम किया उद्देश्य अपनी संस्थाका निश्चित करते हैं उसके अनु- जावे और उससे कोई लाभ न हो तो कार्यकर्ताओंके सार ही वे अपनी कार्यप्रणाली बनाया करते हैं। दिल बुझ जाते हैं, हिम्मत टूट जाती है। समय, द्रव्य, संस्थाका समस्त उत्तरदायित्व उन्हींके कंधोंपर हुआ तथा शक्तिका दुरुपयोग होता है, जनताका विश्वास करता है। किसी भी संस्थाके संचालकों के लिये जरूरी जाता रहता है और "अपना मरण जगतकी हँसी" है कि किसी भी कार्यको हाथमें लेनेसे पहले वे निम्न वाली कहावत चरितार्थ होती है। पहले यह विचार तीन श्रावश्यक बातोंको ध्यानमें रखें, जो सफलताकी लेना चाहिये कि यह कार्य हमारे उत्थानमें सहायक कुंजी हैं
भी होगा या नहीं, हमारे उद्देश्यकी पूतिकी और हमें (क) प्रथम ही उनके दिलमें अपने उद्देश्य ले चलेगा ना नहीं । हमें इस बातसे नहीं डरना तथा कार्यके प्रति दृढ़ श्रद्धा होनी चाहिये, प्रेम होना
चाहिये कि वह काये कठिन है। कठिन भले ही क्यों चाहिये। ऐसा नहीं कि उस कार्यको ईर्षा या किमी
न होवे उस बातका परवा नहीं । कठिनाई का कषायके वशीभूत होकर स्वार्थ-साधनके निमित्त किया
तो हमें स्वागत करना चाहिये और उसके ऊपर
विजय प्राप्त करनी चाहिये । मेरा कहनेका प्रयोजन जावे, किसी पालिसी । Polity ) या डिसोमेसी
यह है कि शक्ति और समयका दुरुपयोग न हो और (Diplomner ) के आधार पर किया जावे;
हम स्वयं या कोई और यह न कह सके कि "खोदा उसकी तहमें Honesty of Purpose अर्थात
पहाड़ और निकली चुहिया।" जिस कार्यको हम करें ध्येयकी सत्यता होनी चाहिये । जब तक कार्यकर्ताओं
उसका अन्तिम परिणाम जरूर अच्छा निकलना चाहिये। के दिलों में उस उद्देश्यके प्रति ऐक्यतारूपसे तथा यथा
समय और शक्तिका व्यर्थ नष्ट करना किसी भी व्यक्ति थरूपसे श्रद्धा नहीं होगी वे उसकी पूर्तिमें असमर्थ
तथा समाजके लिये एक बड़ीसे बड़ी हानि है। रहेंगे। कंधेसे कंधा भिड़ाकर. हाथसे हाथ पकड़े, विना
(ग) तीसरे, जो कार्य हम करें प्रसन्न-वदन होकर भदभावक, हिसा आर परापकारक भावक साथ करें। एक बालकनन् निर्भय तथा निर्विकार होकर प्रेमपूर्वक यदि वे श्रद्धालु कार्यकर्ता कार्यक्षेत्रमें उतरते
निस्वार्थ भावक साथ हँसते २ करें। कोई बुरा कहे हैं तो उनके मार्गमें कोई रुकावटें हाल नहीं सकता।
या भला कहे, हम संक्लशित न होयें, अपने ध्येयपर कोई अड़चनें उनके सामने ठहर नहीं सकतीं । समस्त
डटे रहकर अपने मार्गसे च्युत न होवें। जो सद्भावमंसार उनके प्रेम और अहिंसासे खिंच कर उनकी
नायें लेकर हम पथारूढ़ हुए हैं उनको दूसरों के सामने ओर उमड़ पाता है। वे संमारको मोहित कर लेते
रखते हुए चलें, जो सद्गुण दूसरोंमें जान पड़ें उनको है, या यों कहिये कि वे जनताके हृदयस्थलपर विजय
सहर्ष ग्रहण करें, यदि कोई हमें हमारी त्रुटियों या प्राप्त कर लेते हैं।
गलतियां सुझावे उनको शान्तिपूर्वक समझ कर (ख) दूसरे, यह बात विचारनी जरूरी है कि दूर करें, सुझाने बालेका आभार माने । एक विनय