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रहस्यवाद : एक परिचय
सूर्य और चन्द्रनाड़ी के एक होने पर घट में ही परमतत्त्व का साक्षात्कार किया जा सकता है यह विचार भी उन्होंने अभिव्यक्त किया है।' अनहद्नाद
की चर्चा भी कबीर ने अनेकों पदों में की है ।२ उन्मनि समाधि अवस्था में कबीर का मन रहस्यपूर्ण प्रकाश देखता है। उनका कथन है :
मन लागा उनमन सौं गगन पहूँचा जाइ।
देख्या चंद बिहूँणा चांदिणां, तहां अलख निरंजन राह ॥' कबीर की उलटबासियों में भी नावनात्मक रहस्यवाद भरा हुआ है। उनकी यह उलटवानी अतिप्रसिद्ध है :
समंदर लागि आगि नदीयां जल कोइला भई।
देखि कबीरा जाणी, मंछी रूषां चढ़ि गई ॥ उन्होंने हठयोग के विभिन्न तत्त्वों का वर्णन भी अटपटी बानी में पहेली के रूप में किया है :
आकासे मुखि औंधा कुँआ पाताले पणिआरी।
ताका पानी को हंसा पीवै बिरला आदि बिचारी ॥५ यह तो हुई कबीर के साधनात्मक अथवा यौगिक रहस्यवाद की विवेचना, किन्तु इसके साथ ही उनकी रचनाओं में भावनात्मक रहस्यवाद की भी सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। भावनात्मक रहस्यवाद में विरह की व्याकुलता और उसकी गहन अनुभूति में कबीर का मधुर भाव परिलक्षित होता है। कबीर के रहस्यवाद की विशिष्टता तो यह है कि उन्होंने निर्गुण के साथ प्रेम किया है और यह प्रेमतत्त्व उन्हें सूफी सन्तों से मिला है। इसीलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में इस प्रेम-तत्त्व को विविध रूपों में व्यक्त किया है। कहीं तो उन्होंने इस प्रेम का चित्रण माता-पुत्र के रूप १. कबीर ग्रन्थावली, पृ० १३ ।।
अनहद बाजै नीझर झरै उपजै ब्रह्म गियान । अविगति अंतरि प्रगटै लागे प्रेम धियान ॥
वही, पृ० १६ । ३. वही, पृ० १३। ४. वही, पृ० १२॥ ५. वही, पृ० ३७४ ।