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आनन्दघन का रहस्यवाद
पंथडों निहालु बीजा जिन तणुं, अजित अजित गुण धाम ।' आनन्दघन की अन्तरात्मा अनन्त गुणों के धाम तथा किसी के द्वारा जीते नहीं गए ऐसे अजित जिन का मार्ग निहार रही है । निहारने का अर्थ देखना होता है किन्तु लाक्षणिक दृष्टि से इसका अर्थ अन्तरात्मा में स्थिर होकर परमात्न-अर्जुन की तन्मयता है । इसी तरह अन्यत्र भी आनन्दघन
समता प्रिया कहती है कि मैं निशदिन अपने पति के आगमन की प्रतीक्षा करती रहती हूँ, अपलक दृष्टि से मार्ग निहारती रहती हूँ, किन्तु पता नहीं वह कब आएगा ? मुझ जैसी उसके लिए अनेक हैं, किन्तु उसके समान मेरे लिए दूसरा कोई नहीं :
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निसि दिन जोवु वाटडी, घरि आवरे ढोला । मुझ सरीखे तुझ लाख है, मेरे तु ही ममोला ॥ २
वस्तुतः उसे तो एक मात्र आशा भरोसा अपने प्रिय का ही है | महाकवि तुलसीदास ने यथार्थ ही कहा है
एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास । स्वाति बूंद घनस्याम हित, चातक तुलसीदास ||
चन्द्रमा को चकोर अनेक मिल सकते हैं, किन्तु चकोर के लिए तो चन्द्रमा एक ही है
चाहो अनचाहा जान प्यारे पै आनन्दघन, प्रीति रीति विषम सुरोम रोम रमी है ।
मोहि तुम एक तुम्है मोसम अनेक आह कहा कहु चंदहि चकोरन की कमी है ॥ ४
१. आनन्दघन ग्रन्थावली, अजितजिन स्तवन । २. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ३१ ।
३. तुलसी ग्रन्थावली, १५ ।
४. घनानन्द कवित्त, ३३ ।