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आनन्दघन का रहस्यवाद
वास रूप दो चुगलखोर भी घुसे हुए हैं जिनका काम ही केवल चुगली करना है। ये दोनों चुपके-चुपके काल को आयु-स्थिति में सूचना देते रहते हैं । इसलिए इस शरीररूप महल की कोई भी बात गुप्त नहीं रह गई है । इतना ही नहीं, इन्द्रियरूपी पाँच नारियां तथा मन, वचन काया रूप तीन स्त्रियां भी इस शरीर रूपी राजधानी में राज्य कर रही हैं । इनमें से एक मनरूपी स्त्री ने समूचे संसार को ही ज्ञान रूप खड्ग द्वारा अपने अधीन कर रखा है। आपके इस शरीर महल में क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार पुरुषों ने भी निवास कर रखा है जो अनादि काल से भूखे हैं । सब कुछ खाकर भी ये तृप्त नहीं हुए हैं अर्थात् आत्मिक गुणों को नष्ट करके भी इन्हें सन्तोष नहीं हुआ है । किन्तु सुयोग से इस शरीर रूप मन्दिर में एक ही यथार्थ वस्तु है और इस यथार्थ तत्त्व को जाननेवाला केवल आत्म-ज्ञानी है | वही उस वास्तविक तत्त्व को जानता है । "
इस प्रकार, आनन्दघन ने उक्त पद में बूंद, महिल, चोर, चुगल, त्रिया, राजधानी, खड्ग आदि के सुन्दर रूपक बाँध कर रहस्य को उद्घाटित किया है । सारांश, आनन्दघन के रूपक विविध आधारों को लेकर खड़े किए गए हैं। वास्तव में उनके रहस्यवाद का सौन्दर्य इन रूपकों से बहुत बढ़ गया है।
रहस्यात्मकता
रहस्यात्मक-पद्धति मर्मी सन्त कवियों को एक विशिष्ट पद्धति है । इसके अन्तर्गत गूढ़ एवं अनिर्वचनीय आध्यात्मिक अनुभूतियों को अटपटे रूपकों एवं प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है । सामान्यतया रहस्यात्मक-पद्धति का अभिप्राय है किसी बात को रहस्यात्मक उक्ति के रूप में प्रस्तुत करना । ऐसी रहस्यात्मक - उक्ति वह है जिसमें गूढ़ार्थ भाव
१. एक बूंद को महिल बनायो, तामें ज्योति समानी हो । दोय चोर दो चुगल महल में, बात कछु नहि छानी हो ॥ पांच अरु तीन त्रिया मंदिर में, राज करै राजधानी हो । एक त्रिया सब जग बस कीनो, ज्ञान खड्ग बस आनी हो ।
चार पुरुष मंदिर में भूखे, इक असील इक असली बूझे,
कबहू त्रिपत न आंनी हो । बूझ्यौ ब्रह्मा ज्ञानी हो ॥
— आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ६९ ॥