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आनन्दघन की विवेचना-पद्धति
भक्त कवि ने भी पद्मावती की आराधना व्यापक रूप में की है। उसने पद्मावती को ही सुगतागम में तारा, शैवागम में गौरी, कौलिक शासन में ब्रह्मा और सांख्यागम में प्रकृति के समान बतलाया है। उसके अनुसार उनमें कोई भेद नहीं है और न कोई छोटी-बड़ी है। सब समान हैं । ऐसा आराधक ही सच्चा भक्त है। जिनमें दूसरों के प्रति निन्दा-कटुता या संकीर्णता का भाव हो, वह सच्चा साधक हो ही नहीं सकता।
सन्त आनन्दघन ने भी सुपार्श्व जिन-स्तवन में सर्वधर्म समन्वय की दृष्टि से एक ही परमात्मा के विभिन्न नामों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार अनेकान्त दृष्टि से देखने पर एक ही परमात्मा भिन्न-भिन्न रूपोंमें दिखाई पड़ता है। उनके पृथक्-पृथक् नाम उनके विशिष्ट गुणों के कारण हैं। परमात्मा के विविध नामों की महत्ता प्रतिपादित करते हुए वे कहते हैं कि परमतत्त्वरूप परमात्मा अलख, निरंजन, सकलजंतु विश्राम, अभयदानदाता, परमपुरुष, परमात्मा, परमेश्वर, प्रधान, परमेष्ठी, परमदेव, विधि, विरंचि, विश्वंभर (ब्रह्मा, विष्णु, महेश), हृषीकेश, जगन्नाथ और पाप-क्लेश का नाश करने वाले अघमोचन आदि सब कुछ हैं। इस प्रकार एक ही परमात्मा के अनेक नाम हैं जो अनुभवगम्य हैं। दूसरे शब्दों में, १. भवबीजांकुरजनना, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥
-महादेव स्तोत्र, श्लो० ४४ । २. तारा त्वं सुगतागमे भगवती गौरीति शैवागमे
वज्रा कौलिक शासने जिनमते पद्मावती विश्रुता । गायत्री श्रुतशालिनां प्रकृतिरित्युक्तासि साङ्ख्यागमे मातर्भारति ! किं प्रभूत भणितैर्व्याप्तं समस्तं त्वया ॥ -श्रीभैरव पद्मावती :-श्री योद, श्लो० २०,
परिशिष्ट ५, पृ० २८।। सिव संकर जगदीश्वरू, चिदानन्द भगवान । ललना। जिन अरिहा तीर्थकरू, जोति स्वरूप असमान ॥ ललना ॥३॥ अलख निरंजन वच्छलू, सकल जंतु विसराम । ललना। अभयदान दाता सदा, पूरण आतम राम । ललना । ॥४॥ वीतराग मद कल्पना, रति अरति भय सोग । ललना । निद्रा तन्द्रा दुरदसा, रहित अबाधित जोग । ललना। ॥५॥