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आनन्दघन का भावात्मक रहस्यवाद र्वचनीय है,अकथ है-कही नहीं जा सकती। इसलिए भी अकथ्य है कि न कहने पर साधारणतया विश्वास नहीं किया जाता। न केवल आनन्दघन ने ही 'प्रेम-तीर' लगने की बात कही है, प्रत्युन कवीर और जायमी ने भी इसका उल्लेख किया है। कबीर ने सबद को ही तीर मान कर कहा है:
सारा बहुत पुकारिया पीड़ पुकारै और।
लागी चोट सबद की, रह्या कबीरा ठौर ।' जायसी के अनुसार 'प्रेम-बाण' का घाव अत्यधिक दुःखदायी होता है। जिसे लगता है वह न तो मर ही पाता है और न जीवित ही रह पाता है। बड़ी बेचैनी सहता है। यहां द्रष्टव्य यह है कि आनन्दघन के प्रेम-तीर में यह विशिष्टता है कि उसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता, मात्र अनुभव किया जा सकता है। साथ ही, इस तीर के लगने पर साधक में पीड़ा या बेचैनी नहीं होती, बल्कि वह स्व-स्वभाव में स्थिर हो जाता है, आत्मस्थ हो जाता है।
आनन्दघन ने आध्यात्मिक प्रेम के क्षेत्र में 'प्रेम के प्याले' की बात भी खूब मार्मिक ढंग से कही है। इस सम्बन्ध में उनका कथन है कि प्रेम का यह प्याला अगम्य है अर्थात् रहस्यमय है। इस प्रेम-प्याले को तो अध्यात्म में निवास करनेवाला योगी ही प्राप्त कर सकता है और फिर इसे पीकर मतवाला हुआ यह आनन्द समूह रूप चेतन ऐसा खेल खेलता है कि सारा संसार तमाशा देखता है। प्रेमरूपी रस से भरा हुआ यह प्याला तन की भट्टी में ब्रह्मरूपी अग्नि पर औटाया जाता है और उस सत्त्व का पान करने पर अनुभव की लालिमा सदैव फूटती रहती है। कवि भूधरदास ने तो सच्चा अमली उसी को माना है, जिसने प्रेम का प्याला पिया है। इस
१. कबीर ग्रन्थावली, सबद को अंग, पृ० ६४ । २. प्रेमघाव दुख जाने न कोई।
जेहि लागै जान ते सोई। कठिन मरन ते प्रेम बेवस्था, ना जिउ जिय न दसवं अवस्था ।
—जायसी ग्रन्थावली, प्रमखण्ड, पहली चौपाई, पृ० ४९ । __ आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ५८।
गांजारू भांग अफीम है, दारू शराब पोशना । प्याला न पीया प्रेम का, अमली हुआ तो क्या हुआ ।
-भूधरदास, भूधरविलास, ५० वी गजल, पृ० २८ ।