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षष्ठ अध्याय
आनन्दघन का भावात्मक रहस्यवाद
भावात्मक रहस्यवाद में अनुभूति का महत्त्व
रहस्यवाद में दार्शनिक-चिन्तन की अपेक्षा अनुभूति का महत्त्व अधिक है । दार्शनिक चिन्तन तार्किक या बौद्धिक होता है जबकि अनुभूति का सम्बन्ध भावना (हृदय) से होता है । यद्यपि चिन्तन (विचार) और अनुभूति (भाव) दोनों में ज्ञान का तत्त्व रहता है, तथापि जब दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति भावना की भूमिका से होती है तब रहस्यवाद
जन्म होता है । आध्यात्मिक रहस्यवाद के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए स्पर्जन ने लिखा है कि “जब रहस्यवादी अपनी धारणा इस प्रकार व्यक्त करता है कि वह बुद्धि और भावना - दोनों का ही आनन्द विधान करती है, तब उसे आध्यात्मिक रहस्यवाद कहते हैं । " " डा० राधाकृष्णन् ने विचारात्मक अनुभूति को अध्यात्म विद्या कहा है । उनके अनुसार " अध्यात्मविद्या वह है जिसमें मुख्यतः अनुभूतिगत वस्तुतत्त्व का विचार किया जाए ।"२ आनन्दघन में अध्यात्म-चिन्तन के साथ-साथ : भावात्मक अनुभूति भी है उनके काव्य में बुद्धि और भाव दोनों का सुन्दर समन्वय हुआ है।
इस प्रकार, भावात्मक रहस्यवाद के क्षेत्र में अनुभूति का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अनुभूति का अपर नाम अनुभव है । 'अनुभूयेत अनेन इति
1. The Mystical sense May be called philosophical in all these writers who present their convictions in a philosophical form calculated to appeal to the intellect well as to the emotion.
-Mysticism in English Poetry-Spurgion उद्धृत, कबीर और जायसी का रहस्यवाद और तुलनात्मक अध्ययन, पृ० २०१ ।
२.
डा० राधाकृष्णन्, द हार्ट आफ हिन्दुस्तान, अनुवाद - भारत की अन्तरात्मा, विश्वम्भरनाथ त्रिपाठी, पृ० ६५ ।