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आनन्दघन की विवेचना-पद्धति
१६३ कबीर ने भी कहा है कि षड्दर्शन तथा ९६वें पाखंडों (बौद्धमतों) में से किसी ने भी इस तत्त्व (रहस्य) को पूर्णतः नहीं समझा है।' इसी तरह कवि अखा ने भी षड्दर्शन की खटपट को व्यर्थ बताया है। चीनी और बौद्ध साहित्य में भी लाओत्से ने इस बात को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया है कि “वाद-विवाद करनेवालों को ताओ का अनुभव नहीं । जो उसके विषय में वाद-विवाद करता है उसे उसका ज्ञान ही नहीं रहता। जो पण्डित होते हैं वे 'ताओ' को नहीं जानते। “ताओ की एक प्रसिद्ध उक्ति यह भी है कि 'जो मखर है वह नहीं जानता और जो ज्ञानी है वह नहीं बोलता। 'वस्तुतः' यह ताओ अनायास (सहज) कर्म करने वाले ज्ञानो पुरुष को ही अनुभवगम्य हुआ करता है ।"४ उपनिषदों में भी ब्रह्मानुभूति में तर्क की अप्रतिष्ठा मानी गई है। 'नेपामतिस्तकेंणापनीयाः'५ तथा 'तर्काप्रतिष्ठानात्' (उस परमात्मा का ज्ञान तर्क से नहीं होता)-जैसी उक्तियाँ उपनिषदों में भी पायी जाती हैं। न केवल भारतीय दार्शनिकों ने अनुभव की महत्ता स्वीकार की, प्रत्युत पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी अनुभव को महत्त्व दिया है। प्रो० जे० एस० मेकेंजी ने 'आउट लाइन्स आफ मेटाफिजिक्स' में अध्यात्म-विद्या के लक्षण में 'अनुभव' शब्द का प्रयोग किया है। उनके मतानुसार "अध्यात्मविद्या उस विद्या को कहते हैं जिसमें अनुभव का सार-रूप से विचार होता है।"
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आत्मानुभव के क्षेत्र में पौर्वात्य एवं पाश्चात्य सभी दार्शनिकों ने दार्शनिक वाद-विवाद और तर्क को अनुपयुक्त माना है, अतः दार्शनिक विवाद बौद्धिक उपज है। अनुभूति का सम्बन्ध १. छह-दरसन-छयानवें-पाषंड आकुल किन हूं न जाना ।
-कबीर ग्रन्थावली, पदावली २४ । २. खटदर्शन खटपट करे, तर्कवाद तकरीर । अदबद की औरे 'अखा', ज्यूलावा लवत कुटीर ।।
-कवि अखा। ३. विश्व का मूल अथवा परब्रह्म। 'तत्त्व' और 'बोध' का वाचक । ४. ताओ तेह -लाओत्जे, उद्धृत रहस्यवाद-आचार्य परशुराम चतुर्वेदी,
पृ० १७२।
कठोपनिषद्, ११२।९ ६. कबीर और जायसी का रहस्यवाद और तुलनात्मक विवेचन,
पृ० ६५-६६ ।