________________
आनन्दघन का रहस्यवाद इसकी प्रामाणिक जानकारी सर्वप्रथम ज्ञानविमल सूरि विरचित 'आनन्दघन बाइसी' के 'बालावबोध' से होती है। ज्ञानविमल सूरि ने आनन्दघन के २२ स्तवनों पर वि० सं० १७६९ में 'बालावबोध' लिखने के पश्चात स्पष्टतः लिखा है-“लाभानन्दजी कृत तवन एतला २२ दीसइ छइ. यद्यपि हस्ये तोहइ आपणे हस्ते न थी आव्या।' इसके अतिरिक्त आनन्दघन के समकालीन उपाध्याय यशोविजयजी ने भी इनके २२ स्तवनों पर ही बालावबोध की रचना की। इस प्रकार, उपाध्याय यशोविजय, ज्ञानविमलसूरि तथा मुनि ज्ञानसार आदि सन्तों को आनन्दघन के २२ ही स्तवन प्राप्त हए। इससे यह सिद्ध होता है कि आनन्दघन रचित स्तवन बाईस ही हैं, न कि चौबीस। पदों की संख्या
आनन्द के पद 'आनन्दघन बहोत्तरी' के रूप में प्रसिद्ध हैं। 'आनन्दघन बहोत्तरी' के नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि आनन्दघन ने ७२ पदों की रचना की होगी, किन्तु विभिन्न हस्त-प्रतियों में पदों की संख्या भिन्न-भिन्न हैं। पदों में कोई क्रम भी दृष्टिगत नहीं होता। अब तक विविध हिन्दी गुजराती पद संग्रहों में 'आनन्दधन' की छाप वाले जो पद मिलते हैं, उनकी संख्या लगभग १०८ से भी अधिक पहुँच गई है किन्तु अभी तक यह अन्वेषण करना शेष है कि इनमें से आनन्दघनकृत प्रामाणिक पद कितने और कौन-कौन से हैं ? यद्यपि भाषा, भाव, शैली आदि के आधार पर कुछ पदों के सम्बन्ध में विद्वानों की यह अवधारणा बनी है कि कुछ पद आनन्दघन के नहीं हैं। किन्तु जब तक विभिन्न ज्ञानभण्डारों में प्राचीन हस्त-प्रतियों की खोज न की जाए तब तक इस समस्या का पूरा निराकरण नहीं होता।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का मुख्य प्रयोजन है-आनन्दघनकी उपलब्ध काव्य-कृतियों में निहित रहस्यवादी-प्रवृत्तियों की खोज करना। अतः स्तवनों या पदों की संख्या एवं उनकी प्रामाणिकता का प्रश्न हमारी विषय सीमा में नहीं आता । अतः यहाँ उपर्युक्त निर्देश ही पर्याप्त है।
भाषा
भाषा की दष्टि से आनन्दघन की काव्य कृतियों में कहीं पर हिन्दी का प्रयोग हुआ है तो कहीं पर राजस्थानी और पुरानी गुजराती का।
१-वही, पृ० १५ ।