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आनन्दघन की विवेचन-पद्धति
आनन्दधन ने आत्मानुभव रूपी दिव्य-प्रेम की अभिव्यक्ति दाम्पत्यप्रतीकों के सहारे की है। उन्होंने आत्मा और परमात्मा के शुद्ध प्रेम को पति और पत्नी के प्रेम का रूप दिया है। वास्तव में आनन्दघन के रहस्यवाद का प्राणतत्त्व वह दाम्पत्य-प्रतीक ही है जिसके द्वारा उन्होंने विरह-दशाओं का हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक चित्रण किया है। इसी तरह आत्मा तथा परमात्मा के मिलन की आध्यात्मिक अनुभूति को दाम्पत्यप्रतीकों के द्वारा बड़े ही सुन्दर एवं भावपूर्ण ढंग से प्रतिपादित किया है। उन्होंने साधक रूपी अन्तरात्मा या समता को प्रियतमा या पत्नी और साध्य रूप शुद्धात्मा या चेतन को प्रियतम अथवा पति के रूप में कल्पित किया है। ___ दाम्पत्य-प्रतीकों के उदाहरण आनन्दधन की रचनाओं में प्रचुर मात्रा में हैं। प्रमाणस्वरूप उनकी ये पंक्तियाँ देखिये
-'ऋषभ जिनेसर प्रीतम माहरो।" -'प्रीतम प्राण पती बिना, प्रिया कैसे जीवै हो। -'दुल्हन री तूं बड़ी बावरी, पिया जागै तूं सोवै ।'३
उक्त पंक्तियों में 'प्रियतम,' 'प्राणपति,' एवं 'पिया' शब्द 'परमात्मा' अथवा 'शुद्धात्मा' का प्रतीक है और 'माहरो,' 'प्रिया' एवं 'दुल्हन' शब्द साधक की अन्तरात्मा का प्रतीक है। इसी प्रकार आनन्दघन के अन्य अनेक पदों में भी शद्धात्मा के लिए प्रीतम.४ पीया. कंत. पिऊ.७ पति, चेतन,' भरतार, प्राणनाथ,११ ढोला,१२ लालन, लाल,१४ १. ऋषभ जिन स्तवन, आनन्दघन ग्रन्थावली ।
आनन्दघन ग्रन्थावली, पद २६ ।
वही, पद ७३ । ४. वही, पद २६, ३४, २९, ३३ ।
पद ८५, ३२, ४४। वही पद ५०.६९ एवं ऋषभ जिन स्तवन :
ही, पद ३०, ३४। ८. वही, पद १०५,८। ९. वही, पद १०५ । १०. वही, पद ३५। ११. वही, पद १७, ८० । १२. वही, पद ३१,२० । १३. वही, पद ३५ एवं २०। . १४. वही, पद ३१ ।