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आनन्दघन की विवेचन-पद्धति
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"बालूडी अबला जोर किसौ करै, पीउडो पर घर जाइ' ॥" प्रियतम पर घर में भटक रहे हैं, किन्तु बेचारी बाला नारी किस प्रकार अधिकार दिखलाकर अपने पति को पर घर जाने से रोके। फिर भी, आदर्श नारी का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने पति को उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर किसी भी तरह प्रेरित करे। समता भी आदर्श नारी होने के कारण अपने पति चेतन राज का विनम्रतापूर्वक निज घर में आने का निवेदन करती है । वह सांसारिक भोगों में भटकते हुए अपने प्रियतम को किसी तरह सुपथ पर ले आना चाहती है। वह कहती है कि हे नाथ! आप इधर देखिए,आपकी इच्छानुसार चलने वाली पत्नी मेरेअतिरिक्त अन्य नहीं है । ममता तो धूर्त, कपटी और कृपण है। इतना ही नहीं, वह तो आपको दुर्गति में ले जाने वाली है। वह सब प्रकार से आपका अहित करनेवाली तथा आपको संतप्त करनेवाली है। इसलिए आप मेरी बात पर जरा ध्यान दीजिए और ममता का साथ छोड़ दीजिए । समता के समान आपकी हितैषी अन्य कोई नहीं है । इसी तरह समता अपनी सौत मोहिनी माया-ममता को अमंगलकारी तथा भेड़ के समान बताकर चेतनराज को उसका साथ छोड़ देने के लिए पुनः आग्रह करती है। समता के द्वारा बार-बार कहे जाने पर प्रत्युत्तर में प्रियतम चेतन उसे आश्वासन . १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ४१ । २. सुमता चेतना पतिकु इणविध कहे निजघर आवो । आतम उच्छ सुधारस पीये, सुख आनंद पद पावो ।
-वही, पद १०५ । नाथ निहारो न आप मतासी। वंचक सठ संचक सी रीते. खोटो खातो खतासी॥ ममता दासी अहित करि हरविधि, विविध भाँति संतासी। आनन्दघन प्रभु बीनती मानो, और न हितु समता सी ॥
-वही, पद ४६ । ऐसी कैसी घर बसी, जिन स अनैसी री। याही घर रहसी वाही आपद हैसी री ॥ परम सरम देसी घर में उ पैसीरी। याही ते मोहिनी मै सी, जगत संगै सीरी ।। कौरी की गरज नैसी, गुरजन चखैसीरी। आनन्दधन सुनौसी, बंदी अरज कहैसी री ॥
-वही, पद ४५।