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आनन्दघन की विवेचन-पद्धति
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वस्तुतः चेतन की प्रथम पत्नी समता ही है, किन्तु प्रथम पत्नी होते हुए भी वह अभागिन है । जब से चेतन ममता पत्नी में रत रहने लगे हैं, तब से समता को विस्मृत कर बैठे हैं । ममता नारी में मोहित हो गए हैं । फिर भी, समता सन्नारी होने के कारण अपने पति की प्रतिक्षण मंगल कामना करती और चेतन के मित्र विवेक से अपने पतिदेव के सम्बन्ध में कुशल समाचार पूछती है :
पूछी आली खबर नई आए विवेक बधाई । महानंद सुख की वरन का, तुम्ह आवत हम गात । प्रान जीवन आधार कुं, खेम कुशल कहो बात || "
साथ ही, वह विवेक से प्रिय आगमन के समाचार भी पूछती है । वह कहती है-भाई विवेक ! प्रियतम यहाँ आएँगे अथवा नहीं ? आपको मेरी शपथ है, सच बताइए कि पतिदेव को ममता के यहाँ कुछ सुख प्राप्त हुआ या नहीं ? प्रत्युत्तर में विवेक कहता है कि वहाँ की (ममता के घर की ) कहानी तुम्हें क्या बताऊँ, बताने जैसी नहीं है । वहाँ चेतन राज मायाममता के वश होकर चतुर्गति रूप संसार में भटक रहे हैं। यह सुनकर समता अत्यधिक दुःखी हो जाती है । वह अपनी सौत के बारे में कहती है कि भाई विवेक ! मुझे सौत का दुःख सहन नहीं होता । तुम अपने मित्र चेतन को वहाँ जाने से क्यों नहीं रोकते ? निर्लज्ज उस मोहिनी का क्या साहस है ? उसमें ऐसा कौन-सा मोहक गुण है जिसके कारण तुम्हारे मित्र उस पर मोहित हो गए। उसके घर मिथ्यात्व मोहिनी नामक एक कन्या है और उसी पर तुम्हारे मित्र मोहित हो गए हैं। उसके क्रोध और मान नामक दो पुत्र हैं । मिथ्यात्व परिणति रूपी मोहिनी कन्या का विवाह लोभ के साथ हुआ है । लोभ जमाई तथा मिथ्यात्व मोहिनी के संयोग से माया नामक कन्या पैदा हुई । इस प्रकार, इस मोहिनी के
१. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ३७ ।
२. सलूने साहिब आवेंगे, मेरे वीर विवेक कहौ न सांच । मोसू सांच कहो मेरी सुं, सुख पायो कै नांहि । कहानी कहा कहूं उहां की, डोलै चतुरगति मांहि ॥ — आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ३८ ।