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आनन्दघन की विवेचन-पद्धति
चेतना (अन्तरात्मा) और अशुद्ध चेतना (बहिरात्मा) कह सकते हैं। शुद्ध चेतना समता भावदशा है और अशुद्ध चेतना ममता-मायारूप विभावदशा है। और शुद्ध-अशुद्ध इन दोनों चेतनाओं से परे शुद्धात्म-तत्त्व या परमात्मतत्त्व है। आनन्दघन ने इसी शुद्ध चेतना रूप समता और अशुद्ध चेतना रूप ममता का क्रमशः चेतन की बड़ी पत्नी और छोटी पत्नी के रूप में मानवीयकरण किया है। समता और ममता दोनों में पारस्परिक स्पर्धा की बलवती भावना दृष्टिगोचर होती है ।
चेतन शरीर रूपी नगर का राजा है और उसको अनेक स्त्रियां हैंसमता, ममता, माया, तृष्णा, कुबुद्धि आदि । किन्तु इन सबमें प्रमुख पत्नी समता है और छोटी पत्नी है ममता, जिसे आनन्दघन ने 'नान्हीं बुहु'' के रूप में चित्रित किया है। समता हृदयरूपी समुद्र की पुत्री है और उसका एक भाई है जिसका नाम है अनुभव । समता की प्रिय सखी श्रद्धा है। चेतन के हितैषी मित्र अनुभव और विवेक हैं। राग, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मान, माया, आगा-नप्णा. कपट, मद आदि सूक्ष्म मनोभावों का मानवीयकरण धूर्त, ठग के रूप में किया है जो ममता नारी का परिवार है। इसी प्रकार सरलता, मृदुता, इन्द्रिय-जय, सन्तोष आदि को समता के परिवार के रूप में चित्रित किया है। इस प्रकार, समता, ममता, श्रद्धा, अनुभव, विवेक आदि को जीते-जागते संघर्ष करते, लड़ते-जूझते पात्रों के रूप में चित्रित किया है। मुख्य रूप से चेतन, समता, श्रद्धा, अनुभव और विवेक को बोलती हुई अवस्था में चित्रित किया है। आनन्दघन ने समता
और श्रद्धा सखी में परस्पर वार्तालाप करवाया है।' ___ चेतन के चारित्रिक पतन अर्थात् स्व-स्वरूप से च्युत होने का कारण है ममता नारी के प्रति मोह और उसके उत्थान का कारण है समता नारी के सन्देश का ग्रहण । समता नारी प्रेरणा का स्रोत है, वह बार-बार हिताहित का बोध कराती है। परिणामतः चेतन ममता नारी का परित्याग कर देता है। समता की प्रेरणा से जैसे ही उसके अन्तश्चक्षु खुलते हैं, वह
१. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ४७ । २. समता रतनागर की जाई, अनुभव चंद सु भाई । वही, पद ४ । ३. वही, पद ७९, ८०। ४. वही, पद ३५ ।