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आनन्दघन: व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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संक्षेप में, “आनन्दघन के पद अनुभूति एवं अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टियों से उच्चकोटि के हैं । पद यदि एक ओर जैन दर्शन की वैराग्य वैजयन्ती हैं, तो दूसरी ओर भारतीय गेय पद साहित्य की अनुपम उपलब्धि हैं ।" "
"आनन्दघन का काव्य संख्या में सीमित होने पर भी अगाध एवं अथाह है । कवि की वाणी बड़े ऊँचे घाट की है । आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् ही किसी कवि की वाणी में ऐसी सामर्थ्य सम्भव है । कवि का भाषा एवं छन्द-योजना पर भी पूरा अधिकार था । संगीत के वे बड़े कुशल ज्ञाता थे । यही कारण है कि इनकी कविता के अनुभूति तथा अभिव्यक्ति दोनों पक्ष प्रबल हैं ।
आनन्दघन की समग्र काव्य-कृतियों का अनुशीलन करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उनकी कृतियों में विविध विषयों के उपलब्ध होने पर भी उनका प्रतिपाद्य विषय अध्यात्मतत्त्व का विवेचन ही है । उनके सम्बन्ध में यह कहना कदाचित् अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आनन्दघन की समस्त कृतियाँ एक प्रकार से अध्यात्म का खजाना हैं । उनका प्रत्येक पद भक्ति, योग एवं अध्यात्म-रस से ओतप्रोत है । उन्होंने इस अध्यात्मप्रधान कृतियों का सृजन बड़ी विद्वत्ता, मौलिकता एवं स्वानुभव के साथ किया है । किन्तु खेद है कि उनके काव्य का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हो सका है । प्रौढ़ अध्ययन के क्षेत्र में अभी तो केवल उनका नामोल्लेख भर हुआ है । समालोचकों, विद्वानों एवं गवेषकों की दृष्टि से उनका समग्र साहित्य अछूता ही पड़ा हुआ है ।
द्यपि आनन्दघन की रचनाएँ परिमाण से न्यून हैं किन्तु इन कृतियों रहस्य - भावना का अगाध सागर लहरा रहा है । उनकी इन कृतियों के आधार पर ही हम अध्यात्म-कवि-कुलमणि आनन्दघन की जीवन-दृष्टि समझ सकते हैं । जिस प्रकार उपवन का एक-एक सुरभित पुष्प समस्त प्रकृति का सौन्दर्यानन्द हमारे अन्तर में उतरता है, उसी प्रकार इस रहस्यवादी कवि की एक-एक रचना हमारे अन्तर मानस को आलोकित करती है ।
१. गुजरात के सन्तों की हिन्दी वाणी, पृ० १०५ ।
२. वही, पृ० १०४ ।