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आनन्दघन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस कृति की मुख्य विशेषता यह है कि आनन्दघन ने अधिकांश पदों में विविध भावों का मानवीयकरण किया है। इसमें समता, ममता, चेतन, अनुभव, विवेक, श्रद्धा आदि अमूर्त तत्त्व ही अभिनय करने वाले मानव पात्रों के रूप में चित्रित हैं, वास्तव में मुक्तक जैसे पदों के मनोभावों का नाटकीय ढंग से चित्रण करने में आनन्दघन ने अपनी कवित्वशक्ति का परिचय दिया है।
पदों का विषय-वर्गीकरण ___ 'आनन्दघन बहोत्तरी' एक मुक्तक पदों वाली आध्यात्मिक रचना है। अतः सामान्यतः इसकी विषयवस्तु विभक्त नहीं की जा सकती और न ही ऐसा करना सम्भव है, क्योंकि इसमें अनेक विषयों का भिन्न-भिन्न पदों में वर्णन हुआ है। फिर भी, स्थूल रूप से आनन्दघन के पदों का विषयवर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है :
१. भक्तिपरक पद, २. शृंगार एवं विरह-मिलन सम्बन्धी पद, ३. आध्यात्मिक पद, ४. दार्शनिक पद, ५. योग-साधनात्मक पद, ६. उपदेशात्मक पद।
भक्तिपरक पद
'आनन्दघन चौबीसी' में २२ तीर्थंकरों की स्तुति है जो सहज भक्ति रूप है। किन्तु पदों में प्रेमलक्षणा भक्ति की मुख्यता है। आनन्दघन की इस भक्ति में प्रेम की मस्ती एवं विरह की विदग्धता है। इन्होंने भक्तिविभोर होकर अपने आत्मप्रिय को मीता, साजन, ढोला, लालन, निरंजन, पीव, प्रियतम आदि नामों से अभिहित किया है तथा दाम्पत्य प्रतीकों एवं रूपकों के सहारे प्रेमलक्षणा भक्ति को व्यक्त किया है। प्रेमलक्षणा भक्ति का एक उदाहरण निम्नांकित पद में द्रष्टव्य है :
प्रीति की रीति नई हो प्रीतम, प्रीति की रीति नई। मैं तो अपनो सरबस वार्यो, प्यारे की न लई ॥' १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ४८।