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आनन्दघन व्यक्तित्व एवं कृतित्व अत्यधिक प्रभावित होकर उपाध्याय यशोविजय ने उनकी प्रशस्ति में अष्टपदी की रचना की। इस आधार को लेकर भी आनन्दघन को तपागच्छ का होना माना जा सकता है।
'श्री समेतमिवर तीर्थनां ढालियां' में, जिसकी रचना लगभग सं०१९६० में हुई है, यह स्पष्ट उल्लेख है कि आनन्दधन पंन्यास श्री सत्यविजयजी के लघुभ्राता थे और वे भी क्रियोद्धारक थे। पंन्यास सत्यविजयजी तपागच्छ के थे । अतः सम्भव है कि आनन्दघन भी तपागच्छ में दीक्षित हुए हों।' देहोत्सर्ग
आनंदघन के जन्म-स्थान एवं जन्म-तिथि के समान ही इनके देहोत्सर्ग के विषय में भी मतभेद है। इनके स्वर्गवास सम्वत् का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता । इसके लिए भी अनुमानों का आश्रय लेना पड़ता है। __ आनंदघन के समय में अनेक जैन मुनि मेड़ता और उसके आसपास के क्षेत्रों में विचरण करते थे। आनंदघन की जीवन सम्बन्धी अनुश्रुतियों में भी मेड़ता शहर का विशेषतः उल्लेख किया गया है। इन अनुश्रुतियों के आधार पर आचार्य बुद्धिसागर सूरि का कथन है कि आनंदघन का निधन मेड़ता में हुआ, क्योंकि वहाँ इनके नाम का समाधि-स्थल आज भी विद्यमान है।
सम्भवतः यह उनके स्वर्ग गमन के अनन्तर उनके भक्त श्रावकों द्वारा बनवाया गया होगा। इसी तरह श्रीमोतीचन्द कापड़िया भी मेड़ता में आनंदघन के समाधि-स्थल और उनके जीवन सम्बन्धी प्रचलित किंवदन्तियों के आधार पर यह मानते हैं कि आनंदघन का निधन मेड़ता में हुआ। __ कहा जाता है कि मेड़ता में आज भी एक उपाश्रय है, जो 'आनंदघन का उपाश्रय' के नाम से विख्यात है।
आनंदघन के स्वर्गवास के सम्बन्ध में श्रीप्रभुदास बेचरदास पारेख ने आनंदघन चौबीसी' में लिखा है कि एक बार रेल में यात्रा करते हुए १. श्रीसमेत शिखर तीर्थनां ढालियां, पृ० १४७-१६६ ।
श्रीआनन्दघन पद-संग्रह, पृ० २०१ । ३. श्रीआनन्दघन जी नां पदो, भाग १, पृ० ३६ ।