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आनन्दघन का रहस्यवाद
इस प्रकार, आनन्द कवि विक्रम की १७वीं शताब्दी के तृतीय चरण में अर्थात् १६६० के आसपास विद्यमान थे। इन्होंने 'कोकमंजरी' एवं 'सामुद्रिक' इन दो प्रमुख ग्रन्थों की रचना की। 'कोकमंजरी' की रचना के समय यदि इनकी आयु ३५ वर्ष भी मान ली जाय तो इनका जन्म सं० १६२५ के आसपास हुआ होगा, जबकि जैन सन्त कवि आनन्दधन का संवत् १६६० के आसपास माना जाता है। इस प्रकार आनन्द कवि जैन सन्त कवि आनन्दघन से वय में ३०-४० वर्ष अवश्य बड़े थे। दूसरे आनन्द कवि ने जिस कोकमंजरी की रचना की वह भी आनन्दधन की कृति नहीं मानी जा सकती, क्योंकि आनन्दघन का जीवन एवं काव्य वैराग्यपरक तथा आध्यात्मिक है। जैन परम्परा के एक सन्त कवि से कोकमंजरी जैसी रचना की अपेक्षा करना नितान्त असंगत है। तीसरे, कोकमंजरी की रचना संवत् १६६० सुनिश्चित है। इस समय तक या तो जैन कवि आनन्दघन का जन्म ही नहीं हुआ या वे मात्र बालक ही होंगे। (३) घनानन्द और प्रानन्दघन
विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में वृन्दावनवासी रीतिकालीन घनानन्द नाम के ब्रजभाषा के कवि हुए हैं। ये रीतिकालीन शृंगार या प्रेम के उन्मुक्त गायक हैं। इनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ब्रजभाषी प्रदेश के किसी गांव में संवत् १७४६ के लगभग हुआ। शैशवावस्था व्यतीत करने के बाद ये दिल्ली चले गये और वहां मुगल सम्राट मुहम्मदशाह रंगीले के मुंशी बने। कहा जाता है कि वहां वे सुजान नामक वेश्या पर आसक्त हो गये।
घनानन्द अपने समय के एक अच्छे ध्रुपद गायक थे। गायन कला के कारण ही सुजान इनकी ओर आकर्षित हुई होगी। अनुश्रुति है कि एकबार इन्होंने नहीं गाया, किन्तु सुजान के दरबार में आ जाने पर वे गाने पर सहमत हो गये। इसी कारण, राजा ने इन्हें देश-निकाला दे दिया। इन्होंने सुजान से साथ चलने का आग्रह किया, किन्तु वह सहमत नहीं हुई। अन्त में विरत होकर वे वृन्दावन चले गये और वहां निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित हो गये। फिर भी, इन्होंने 'सुजान' शब्द का अपनी काव्य-कृतियों में प्रयोग करना नहीं छोड़ा। अपने सवैये और कवित्तों में एक जीवन्त कामिनी के रूप में इन्होंने सुजान का बराबर उल्लेख किया