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आनन्दघन: व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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श्री विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने 'घनानन्द कवित्त' की भूमिका में' तथा डा० कुमारपाल देसाई के 'आनन्दघन: एक अध्ययन' में इन कवियों की पृथक्ता प्रतिपादित की है ।
(१) नन्दगांववासी श्रानन्दघन और जैन कवि श्रानन्दघन
नन्दगांववासी 'आनन्दघन' या 'घन आनन्द' चैतन्य महाप्रभु के समकालीन थे । संवत् १५६३ में चैतन्य महाप्रभु नन्दगांव गये तब वे विद्यमान थे । वे अपनी कृतियों में 'आनन्दघन' और 'घन आनन्द' इन दोनों नामों का प्रयोग करते थे । इनके द्वारा रचित दो-चार पद नन्दगांव के मन्दिरों में आजतक गाये जाते हैं । ये ब्राह्मण कुलोत्पन्न भक्त कवि थे, न कि सन्त । नन्दगांववासी आनन्दघन का स्थितिकाल विक्रम की सोलहवीं शती का उत्तरार्द्ध ठहरता है ।
इस प्रकार, नन्दगांववासी आनन्दघन, जैन कवि आनन्दघन से लगभग १०० वर्ष पूर्व विद्यमान थे ।
(२) श्रानन्द कवि और श्रानन्दघन
नन्दगांववासी आनन्दघन, जैन कवि आनन्दवन और वृन्दावनवासी घनानन्द (आनन्दघन ) से भिन्न एक आनन्द कवि भी हैं जिनके बारेमें वर्षों तक यह पता नहीं चल पाया था कि ये कवि कौन हैं, कहां के निवासी हैं और किस शताब्दी में विद्यमान थे ? किन्तु बाद में कुछ हस्तलेख प्राप्त हुए जिनमें आनन्द कवि के वंश, समय और स्थान का स्पष्ट उल्लेख है ।
१.
२.
३.
घनानन्द कवित्त-विश्वनाथप्रसाद मिश्र, पृ० १९-२९ ।
आनन्दघन: एक अध्ययन - डा० कुमारपाल देसाई, पृ० १२५-२८ ।
कायथ कुल आनन्द कवि, वासी कोट हिसार । कोककला इहि रूचिकरण, जिन यह कियो बिचार | रितु बसन्त सम्बत सरस, सोरह से अरु साठ | कोकमंजरी यह करी धर्म कर्म करी पाठ ॥ -- ( खोज ०, १९२६ - १० एफ ) । रितु बसन्त सम्बत सत सोरह आगत साठ । कोकमंजरी यह करी करम धरम के पाठ ॥ - ( खोज ० १९२३ - १० बी )
- नागरीप्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित । उद्धृत - घनानन्द कवित्त, पृ० ११ ।