Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४०, ४१.
४२, ४३.
४४.
४५.
४६-५०.
५१.
५२, ५३.
५४.
५५, ५६.
५७.
५८, ५९.
६०, ६१.
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६३.
६४.
६५.
६५/१.
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६८, ६९.
७०, ७१.
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७३.
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७५.
७५/१.
७५/२,३.
७६-७८.
७९.
८०-८१/१ .
८१ / २.
८२.
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आवश्यक नियुक्ति
अवधिज्ञानी की मनोद्रव्य, कर्मद्रव्य, तैजस-कर्मशरीर, तैजसद्रव्य, भाषाद्रव्य आदि को
जानने की इयत्ता | परमावधिज्ञान का विषयक्षेत्र ।
तिर्यग्योनि के अवधिज्ञान का स्वरूप ।
नारक के अवधिज्ञान का क्षेत्र ।
देवताओं के अवधिज्ञान का क्षेत्र ।
उत्कृष्ट एवं जघन्य अवधिज्ञान के स्वामी । अवधिज्ञान के संस्थान ।
आनुगामिक अवधिज्ञान के स्वामी ।
अवधिज्ञान की स्थिति ।
क्षेत्र, काल की वृद्धि-हानि के चार, द्रव्य की वृद्धि हानि के दो तथा पर्याय की वृद्धि
हानि के छह प्रकार ।
स्पर्धकों के आधार पर अवधिज्ञान की तीव्रता - मंदता ।
अवधिज्ञान का उत्पाद और प्रतिपात ।
द्रव्य और पर्याय का उत्पाद और प्रतिपात ।
देवताओं में अवधि और विभंग की स्थिति ।
नारक, देव और तीर्थंकरों के अवधिज्ञान की एकरूपता । अवधिज्ञान का क्षेत्र |
गति द्वार के अवयवों के प्रतिपादन का संकेत तथा अवधिज्ञान एक लब्धि का निरूपण । आमषैौषधि आदि लब्धियों के नामोल्लेख |
वासुदेव के बल का उदाहरण । चक्रवर्ती के बल का उदाहरण । तीर्थंकरों के बल का निरूपण । मनः पर्यवज्ञान का स्वरूप ।
केवलज्ञान का स्वरूप । तीर्थंकरों की देशना वाग्योग द्वारा ।
प्रस्तुत प्रसंग में श्रुतज्ञान के अधिकार का निर्देश ।
उपोद्घात निर्युक्ति के छब्बीस द्वार ।
तीर्थंकर, गणधर आदि की स्तुति । नियुक्ति - कथन की प्रतिज्ञा ।
दस आगमों की नियुक्ति करने की प्रतिज्ञा । आवश्यक निर्युक्ति कथन की प्रतिज्ञा । निर्युक्ति का स्वरूप ।
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